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प्रश्न :- जब खुद ने खुदी से पूछा कि खुदा क्या है ?
उत्तर :- जब मेरे बेटे ने मुझे से पूंछा की पूर्व में लिया गया मंत्र बिन बोले लगातार २४ घंटे सुनाई देता है ये क्यों और क्या है ?(खुुुद=self=आत्मा)
उत्तर देने से पहले ईश्वर से प्रार्थना की, क्योंकि ” प्रार्थना एक रोशनी है जो अंतर्मन की अनंत गहराई मे छुपे ‘मै’ की खोज करती है।”
जैसे ही मै को खोजने यात्रा शुरू होती है, तो सांसो से बोलने वाली आवाज अंदर जाती है और कंठ से बोलने वाली आवाज बिना बोले ही झंकृत होती है।कहा गया है “आत्मा विजायते पुत्रा” अर्थात पुत्र पिता की आत्मा ही है । पुत्र ही पिता से पूंछ रहा है। यहां व्यक्ति खुद ही खुद को ढ़ूंढ़ रहा है। खुद ही वहां पहुंच कर खुदा को व्यक्त कर कहता है, अयम आत्मा ब्रह्म । अहमं ब्रह्मास्मि। तत् त्वम असि । प्रज्ञानं ब्रह्म । ऊँ नमः शिवाय। वह शिव तुम ही हो ।
अर्थात मै सुनने वाला कान नहीं, चलने वाला पैर नहीं ,मै तो वो हूं जिसके बारे मे कहा गया है कि- ” बिग पग चले ,सुने बिन काना।” ——-
आप एक चेतना हो । चेतना ही स्वरूप लेकर सामने खड़ी होती है। चेतना ही सुनती है , सुन रहे हो तभी सुनाई दे रहीं हैं। वरना जब बोलने की प्रक्रिया हुई ,तब भी वही से परा,पश्यंती, मध्यमा,बेकरी से ही बोला था। अब इतनी यात्रा की जरूरत नहीं है ,परा मे पल्सेट (धड़क ) हो रही ध्वनि को सुन रहे हो। और सोच रहे हो जो हमने वाचिक,उपांशु, मानसिक जप था अब तो नहीं है। सुनना भी छोड़ना है। बुद्धि को समत्व मे प्राप्त करना है । जहां सारी की सारी इंद्रियां अपने विषयों से उन्मुक्त हो जाए,अर्थात सुनने वाले का कान से कनेक्शन टूट जाएं। संक्षेप में आप खोज मे हो ‘ मै ‘ की एक पथ पर हो, ऐसा इसीलिए हो रहा है। यही मेरा उत्तर है।