
पुत्रोद्वाहात्परं पुत्री विवाहो न ऋतुत्रये ।
नतयोव्रतमुद्वाहान्मगले नान्यमंगलम् ।।
पुत्र के विवाह के बाद ६ माह तक कन्या का विवाह नही करना चाहिए। पुत्र और कन्या के विवाह के अनन्तर ६ माह तक व्रतादि मंगल कार्य भी नहीं करना चाहिए।
विवाहश्र्चैकजन्यानां षण्मासाभ्यन्तरे यदि ।
असंशयं त्रिभिर्ववैंस्तत्रैका विधवा भवेत् ।।
यदि ६ माह के अन्दर दो सहोदरयों का विवाह हो तो ३ वर्ष के अन्दर उनमें से एक वैधव्य को प्राप्त करती है।
प्रत्युगंहो नैव कार्यो नैकस्मै दुहितुर्द्वयम्।
न चैक जन्मनोः पुंसोरेकजन्ये तु कन्यके।।
एक विवाह के साथ दूसरा विवाह नहीं करना चाहिए। एक ही वर के लिए एक साथ दो कन्या नहीं देना चाहिए। तथा सहोदर भाईयों का विवाह सहोदरी बहनों से नहीं करना चाहिए। इससे अमंगल होता है। ( नारद संहिता )