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प्र. ईश्वर किसी को अत्यंत दुःखभागी बनाता है किसी को अत्यंत सुखी बनाता है । यह विषमता क्यों होती है ?
उत्तर – प्राणियों के सुख दुख का कारण उनके कर्म हैं, ईश्वर का कारणत्व जो माना गया है वह ठीक मेघ के समान समझा जाय।पर्जन्य के कारण ही ब्राहि,जौ आदि उत्पन्न होते है ( यहां पर्जन्य तो साधारण कारण है ) परन्तु उन अन्नों मे जो विषमता पायी जाती है-वह उन बीजों की विशेष सामर्थ्य के कारण है।
यह भी नहीं कहा जा सकता कि सृष्टि की प्रारम्भिक दशा मे धर्म अधर्म का सर्वथा अभाव था ,क्योंकि सृष्टि अनादि मानी गयीं है। इस प्रकार शुभ अशुभ कर्मो के अनुसार सुख-दुःख का भोग होता है।
दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय मे देवताओं द्वारा दुर्गा की स्तुति कर कहा जा रहा है कि आप तो दृष्टिमात् से असुरों का संघार कर सकतीं हो तब भी शस्त्र का उपयोग इस कारण करती होकि आपके शस्त्र से पवित्र होकर वे शत्रु भी दिव्यलोक को प्राप्त कर सकें।
महाभारत में शिशुपाल का वध भी सुदर्शन चक्र से करना. भी एक और उदाहरण आप अब सहज समझ सकते हो।
अतः ईश्वर किसी के सुख-दुःख का कारण नहीं है बल्कि ” सुखं दुःखं भवो भावों “।