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जीव :-
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४ अन्तःकरण
५महाभूतों
५तन्मात्राओं
५ज्ञानेन्द्रियों
५कर्मेन्द्रियों
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२४ तत्वों से मिलकर बना है।
४अन्तःकरण मे मन,बुद्धि, चित्त, अहंकार हैं।
आइये पहले मन को समझते है।
आत्मन एष प्राणो जायते,
यथैषा पुरुषे छायैतस्मिन्नेतदाततं
मनो^धिकृतेना यात्सस्मिछरीरे।।
आत्मा से प्राण उत्पन्न होता है जैसे पुरुष से छाया,उसी प्रकार प्राण मे मन व्याप्त है।
मन से अधिकृत होकर प्राण इस शरीर मे आता है।एवं प्राण मन को लेकर इस शरीर से निकलता है, एवं मन के साथ वाक इन्द्रिय भी निकलती है। इसलिए मन कहने से प्राण और वाक का बोध होता है।
निर्विकल्प मन– ब्रह्म स्वरूप होता है।
सविकल्प मन – माया से ग्रस्त होता है।
विषय रहित मन– मुक्ति प्रदान करता है।
विषयासक्त मन – पुनर्जन्मो का कारण है।
प्राण के कम्पन के साथ प्रकम्पित मन चंचल रहता है, और उसका सारा व्यापार वाक से ओत प्रोत होता है।
जैसे सोचना- विचारना।