January 17, 2019

अव्यक्त से व्यक्त की उत्पत्ति-भाग 21

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सम्पूर्ण विश्व शक्ति की कलाओं से बना है।यदि विश्व में प्रभाव छोड़ना हैं तो शक्तिमान बनना पड़ेगा। शक्ति एक ओर कल्याणकारी है, और दूसरी ओर विनाश कारी।
समस्त जीव समूह, प्रकृति की शक्ति से विवश किये हुए है, और यह प्रकृति केवल भगवान के वश मे है, यह वही प्रकृति है जिसे ईश्वर की अर्धांगिनी कहा गया है।
ईश्वर जैसा नाम रूप धारण की आज्ञा देते है वैसा ही नाम रुप धारण करती है।
प्रकृति की शक्ति मायने(मतलब)
प्र= सत
कृ= रज
ति= तम
अर्थात सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण की शक्ति।
सतगुण= ज्ञान शक्ति।
रजोगुण= क्रियाशक्ति।
तमोगुण= द्रव्य शक्ति।
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सत= अन्तःकरण की शक्ति।
रज= प्राण और इन्द्रियों की शक्ति।
तम= पंचमहाभूतों की शक्ति।
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शक्ति का आविर्भाव♂नाद―बिन्दु― अक्षर ― अहंकार
श ~~~~~~~~~~~~~~~~~क्ति
ऐश्वर्य ~~~~~~~~~~~~~~~~~ पराक्रम
परमार्थ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ उपाधि
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वह कौन सी शक्ति है जो सबका पालन करती है, आदर्श माता ही आदर्श सन्तान को उत्पन्न करती है।( वीर माताओं ने वीर सन्तान को जन्म दिया जैसे शिवाजी अपनी माता के कारण छत्रपति शिवाजी बना।
एक स्वाभाविक शक्ति है तथा दूसरी वैभाविक शक्ति है। जड़ मे रहने वाली प्रकृति नियन्त्रित करती है, जबकि चेतन शक्ति स्वतः नियन्त्रित है।शक्ति का दुरुपयोग न हो इसके लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है।
वैभाविक शक्ति महामाया है भयंकर है मोहित करने वाली है, इसे जप,होम,तर्पण, मार्जन, ब्रह्म भोजन द्वारा काबू में कर सकते है।
स्वाभाविक शक्ति शुद्ध स्वरूप है इसे पटल,पद्धति, वर्म,स्त्रोत, और सहस्त्रनाम द्वारा वश मे कर सकते हैं।
प्रकृति के दो विभाग है :-
१- अपरा :- पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु, आकाश, मन,बुद्धि, अहंकार। ऐ अष्टधा प्रकृति आसुरी प्रकृति है।
२- परा प्रकृति :- जीव शक्ति, आत्मा की पराशक्ति दैवीय शक्ति है अभय,अक्रोध, अलोभ,पवित्रता, तप,दान, यज्ञ,त्याग, आदि।
विशेष रूप से पराशक्ति ( परमात्मा विद्या) अक्षर परमात्मा का ज्ञान है।
अपरा शक्ति धर्म-अधर्म के साधन और उसके फल से सम्बध रखने वाली विद्या (अविद्या) ही है।

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