January 20, 2019

अव्यक्त से व्यक्त की उत्पत्ति-भाग 24

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सांख्य और पुनर्जन्म :-
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कपिल मुनि द्वारा लिखित सांख्य दर्शन के सम्बध में “सांख्यकारिका” नामक ग्रन्थ उपलब्ध है। उसके अनुसार “प्रकृति” सर्वप्रमुख तत्व है और इसके पश्चात जो प्रमुख तत्व है वह है आत्मा। इस पुरुष अथवा आत्मा तत्व की उत्पत्ति भी प्रकृति से ही मानी गई है।
प्रकृति के सम्बंध में सांख्यदर्शन कहता है कि सत्व,रज,और तम इन तीनों गुणों की साम्यावस्था ही प्रकृति कहलाती है।
सांख्य दर्शन आत्मा को पुरुष की संज्ञा देता है और कहता है कि जैसे कोई भी व्यक्ति स्वयं के अस्तित्व को नहीं नकार सकता है, उसी प्रकार आत्मा का अस्तित्व भी स्वयंसिद्ध है।
इसके अनुसार आत्मा शरीर, इन्द्रिय, मन,और बुद्धि से भिन्न है।आत्मा वह शुद्ध चैतन्य स्वरूप है, जो सर्वदा ज्ञाता के रुप में रहता है। आत्मा में कोई क्रिया नहीं होती है।वह स्वयंभू,नित्य और सर्वव्यापी सत्ता है।
सांख्य दर्शन के अनुसार प्रत्येक जीव में पृथक आत्मा का निवास होता है और इसका कारण यह बताया गया है कि यदि एक ही आत्मा सभी लोगों मे विद्यमान होती, तो सभी एक साथ मर जाते। अतः आत्मा एक नहीं अनेक हैं। सांख्यदर्शन पृथ्वी, अग्नि, जल,वायु, आकाश, इन पांच महाभूतों के अतिरिक्त मन, बुद्धि,अहंकार आदि आठ तत्वों को मानता है। तथा एक व्यक्ति की आत्मा उसकी मृत्यु के उपरांत प्रकृति मे विलीन हो जाती है, और पुनः जन्म लेती है।
वेदों में “परमात्मा की असुनीति” के माध्यम से स्पष्ट किया गया है कि परमात्मा प्राणरुप जीव को भोग के लिए एक देह से दूसरी देह मेंले जाता है। उस असुनीति परमात्मा से प्रार्थना है कि वह अगले जन्मों मे भी हमें सुख प्रदान करे एवं ऐसी कृपा करें कि सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी आदि हमारे लिए कल्याणकारी सिद्ध हो।
इसी प्रकार एक मंत्र मेंं कहा गया है कि मृत्यु के उपरांत शरीर मे जो पंचतत्व की मात्रा होती है, वे प्राणान्त होने पर अपने अपने मूल तत्वों मे जाकर विलीन हो जाती है, परन्तु जो जीवात्मा शेष रहती है, वह दूसरी देह धारण करती है।
” अब सृज पुनग्ने पितृभ्यो यस्य आहूतश्चरति स्वधाविः।
आयुर्वसान उप वेतु शेषः सं गच्छतां तन्वा जातवेदः।।”
― ऋग्वेद १०/१६/०५

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