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अक्षर से यह विश्व कैसे प्रकट होता है ?
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“भूतयोन्यक्षरमित्युक्तम् ,
तत्कथंभूतयोनित्वमित्युच्यते ।”
अक्षर ब्रह्म भूतो ( पंच महाभूत ) की योनि है उसका वह भूतयोनित्व किस प्रकार है, कहते है―
यथोर्णनाभिः सृजते गृहृते च,
यथा पृथ्वियामोषधयः सम्भवन्ति ।
यथा सतः पुरुषात्केशलोमानि,
तथाक्षरात्सम्भवतहि विश्र्वम ।।
जिस प्रकार मकड़ी जाले को बनाती और निगल जाती है, जैसे पृथ्वी मे औषधियां उत्पन्न है और जैसे सजीव पुरुष से केश एवं लोम उत्पन्न होते है उसी प्रकार उस अक्षर से यह विश्व प्रकट होता है।
मकड़ी अन्य उपकरण की अपेक्षा न कर स्वयं ही अपने शरीर से अभिन्न तन्तुओं को रचती है बाहर फैलाती है और फिर उन्हीं को गृहीत भी कर लेती है। यानी अपने शरीर से अभिन्न कर देती है। तथा जैसे पृथ्वी मे ब्रीहि-यव इत्यादि से लेकर वृक्ष पर्यन्त सम औषधियां जैसे-जीवित पुरुष से उसमे विलक्षण केश और लोम उत्पन्न होते है।
उसी प्रकार उस अक्षर से यह विश्व प्रकट होता है।