January 11, 2019

अव्यक्त से व्यक्त की उत्पत्ति -भाग 4

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ऋग्वेद में१० वे मंडल के १२९ वे ” नासदीय सूत्र ” के २ रा सूत्र :-
न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि।
न रात्र्या अहन् आसीत् प्रकेतः।।
आनीदवातं स्वधयातदेकं।
तस्माद्धान्यन्य परः किंचनास।।
तर्हि― उस समय, शुरुआत की शुरुआत में
मृत्यु― मरण । Mortality/Death
अमृत― अमृतत्व । Immortality/Life
प्रकेतः― चिन्ह।
रात्र्या प्रकेत― रात्रि का निशान
अहन् प्रकेत― दिन का निशान
तदेकं= तत एकम = वह अकेला एक ।
स्वधया― स्वतः की शक्ति से।
अवातं― बिना वायु के।
आनीत् ― स्वास लेता था और छोड़ता था।
तस्मात्― वह जो था बिना वायु के श्वाँस लेता हुआ स्थित था।
ह― सचमुच
अन्य न परः― दूसरा भिन्न
किंचन न आस ― कोई भी न था।
अर्थात ” एकमेवाद्वितीयम् “
मूलारम्भ मे / प्राग्जगत काल मे अर्थात शुरुआत की शुरुआत के भी शुरुआत में सृष्टि रचना के पूर्व मृत्यु, जिन्दगी, रात तथा दिन का चिन्ह नहीं था। वह अकेला अपनी अपरम्पार शक्ति से बिना वायु के श्वास ले रहा था। रात और दिन पहचानने के चिन्ह सूर्य और चन्द्रमा भी नहीं थे। फिर काल ( Time) किस प्रकार रह सकता है? ऐसी अवस्था मे वह केवल अकेला एक था।
वह अपनी अपरम्पार शक्ति के बल पर ही हिलता डुलता था। अर्थात Vibration and movement . उससे सूक्ष्म कुछ भी न था।
अपने ही बल पर समस्त संसार को धारण करनेवाला शक्ति से युक्त था।

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