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जगत के पदार्थ वस्तुतः ठोस पदार्थ नहीं है , संकल्प से हम संसार के सब पदार्थ अपने अनुकूल परिवर्तित कर सकते है
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आप शायद पढ़ा सुना होगा कि ― सांख्याचार्य भगवान कपिल की माता ने शरीर जब छोड़ा तो उनका शरीर पानी बन गया और उससे एक नदी निकली ।
श्री चैतन्य महाप्रभु का शरीर जगन्नाथ स्वामी के श्री विग्रह मे लीन हो गया।
मीराबाई का शरीर द्वारिकाधीश के श्री विग्रह मे प्रविष्ट हुआ।
महाप्रभु वल्लभाचार्य ने भागीरथी मे शरीर छोड़ा तो वह आलौकिक अग्निशिखा मे रुपांतरित हो गया।
संत कबीर का शरीर फूल बन गया।
इसके विपरीत उदाहरण देखते हैं―
महर्षि अगस्त्य एवं वशिष्ठ जी की उत्पत्ति घट से हुयी।
माता सीता ( जानकी ) भूमि से पैदा हुईं।
द्रौपदी और उनका भाई धृष्टद्युम्न यज्ञवेदी से जन्म।
अष्ट सिद्धियों मे शरीर का बहुत छोटा हो जाना, एवं बहुत बहुत बडा़ बना लेना जैसे रामायण के सुन्दरकांड की एक चौपाई पर गौर करिऐ
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा ,
तासु दून कपि रुप देखावा।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा,
अति लघुरूप पवन सुत लीन्हा ।।
( जैसे जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढाती थी, हनुमानजी उसका दूना रुप दिखाते थे,उसने सौ योजन अर्थात चार सौ कोस मुख किया,तब हनुमानजी ने बहुत ही छोटा रुप धारण कर लिया और सुरसा के मुख मे घुसकर तुरंत बाहर निकल आऐ ) ।
विश्वामित्र शाप से रंभा अप्सरा तत्काल पत्थर हो गयी।
गौतम ऋषि के शाप से अहिल्या भी पाषाण हो गई थी।
यदि सिद्धि से शरीर छोटा बन गया तो शरीर की रक्त, माँस,हड्डियां क्या हुई, परन्तु ये हुआ है।
क्योंकि संकल्प से हम संसार के सब पदार्थ अपने अनुकूल परिवर्तित कर सकते हैं।
यही कारण है कि प्रबल वरदान और प्रबल शाप तत्काल असर करता है।
क्योंकि हमारा संकल्प ही घनीभूत होकर हमें इन पदार्थों के विभिन्न रुपो मे उपलब्ध हो रहा है।