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एक राशि के अन्तर्गत पृथ्वी के पचास करोड़ लोग आते हैं, सही मे सोचने वाली बात है, की कैसे भिन्न भिन्न प्रभाव ग्रह डालते हैं।
सूर्य का प्रकाश और ताप को, चन्द्रमा के प्रकाश को पृथ्वी के निवासी घटते बढ़ते क्रम मे महसूस करते है, इसी तरह सूर्य के कारण ऋतु परिवर्तन ,दिन-रात का होना भी सभी को मान्य है। पूर्णिमा का प्रभाव भी समुद्र मे ज्वारभाटा, पागलपन, आत्महत्याओं होना भी मानते हैं। परन्तु जब शेष ग्रहों की बात आती है तो अविश्वास आ जाता है,
सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करती है, अतः कभी ग्रह पृथ्वी के बहुत करीब तो कभी बहुत दूरी पर चला जाता है। पृथ्वी से ग्रहों की दूरी घटते बढ़ते रहने से पृथ्वी के सापेक्ष उसकी गति मे भी निरन्तर बदलाव आता रहेगा।
यदि ग्रह पृथ्वी के बहुत दूरी पर होता है तब वह अधिक गतिशील होता है। पुनः वही ग्रह यदि पृथ्वी के जितना निकट होता है, उतना ही विपरीत गति मे होता है।
गति में बदलाव होते रहने से पृथ्वी के परिवेश मे निरंतर विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र और तीव्रता मे बदलाव आता रहता है। पृथ्वी से अधिक दूरी पर रहने वाला, अधिक गतिशील अतः इस प्रकार ग्रहों मे गतिज उर्जा अधिक होती है। ठीक इसी तरह पृथ्वी के अत्यधिक निकट रहने वाला ग्रह वक्री गति मे होता है अतः वह ऋणात्मक गतिज उर्जा से संयुक्त होता है, किन्तु पृथ्वी से औसत दूरी पर रहने पर ग्रह औसत गति में होते हैं, इनमें गतिज उर्जा की कमी तथा स्थैतिज उर्जा की अधिकता होती है।
कोई भी ग्रह.वक्री या माग्री तिथि के आसपास शत प्रतिशत स्थैतिज उर्जा से संयुक्त होता है।
गतिज उर्जा से संयुक्त जातक उस ग्रह के काल मे सहज सुखद परिस्थितियों के बीच से गुजरता है, परिवेश उसे भाग्यवान सिद्ध करता है, इसके विपरीत ऋणात्मक गतिज ऊर्जा वाले जातक उस ग्रह के काल मे विपरीत कठिन परिस्थितियों के बीच गुजरते है।परिवेश से ही दैन्य हो जाते है।
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