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प्रकृति प्रदत्त उत्पाद लक्षण -भाग 2
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देवता यत्र नृत्यंति पतंति प्रज्वलन्ति च ।
मुहू रुदन्ति गायन्ति, प्रस्विधन्ति हसन्ति च।।
वमन्त्यग्नि तथा धूमं स्नेहं रक्तं पयोजलम्।
अधोमुखाश्र्च तिष्ठतिं स्थानात्स्थानं व्रजंन्ति च।।
एवमाधा हि दृश्यन्ते विकाराः प्रतिमासु च ।
जहां पर देवता(मूर्तियां) नाचते हो, गिरते हो और जलते हुए दृष्टि गोचर होते है। बार बार रोते हैं, गाते हैं, तथा उनसे पसीना निकलता है, और हसते हैं, तथा उनके मुख से अग्नि, धुँआ,तेल, खून,दूध,जल गिरता हो। वे अधोमुख दृष्टि गोचर हो, तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं इत्यादि विकार दृष्टि गोचर हो तो आपत्ति सूचक होता है। अतः इसकी शान्ति कराये।इसी तरह बिना अग्नि के चिनगारी, बिना ईधन की ज्वाला, मेढक की चोटी, सफेद काग दिखाई पड़ना. अमंगल होता है। तीन सिर वाले पशु दिखाई दें या गाय के गर्भ से घोड़ा पैदा हो ये सभी लक्षण अमंगलसूचक हैं।
गाँव मे श्रृगांल का छिपना, दिन मे कबूतरों का और रात मे काऔं क व्याकुल होना अशुभ सूचक है इसकी शान्ति कराना चाहिए।