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आपके कर्तव्य और अकर्तव्य की अवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है, सो शास्त्र द्बारा नियत कर्म ही करना चाहिए।
आचरण करके ही पाने का विधान है ।
किसी पहलवान को हाथ जोड़कर मात्र से पहलवान नहीं बन सकते ।
या किसी चिकित्सक के दर्शन से रोग निवृत्ति नहीं होगी। अतः आचरण करना होगा ।
फल पाने के लिये अर्थ जानने से कुछ नहीं होगा।जैसे शिक्षित करने के लिए साक्षर करते हैं और बच्चे को सिखाते आ आम का , होता है, जिसका पेड़ ऐसा होता है , तना पत्ता फूल और फल ऐसे ऐसे होते है एवं आम के फलों का सेवन करने से क्या लाभ-हानि होती है,वगैरह वगैरह। इतना जानना सिर्फ काफी नहीं है। जानकर प्राप्त करना अभीष्ट है ।
जैसे अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी मे दरवाजा खोलने के लिए एक निश्चित शब्द बोलना पड़ता है “सिमसिम” अर्थात सिमसिम दरवाजा खुल जा बोलना पड़ेगा। आईये अन्य तरीके से समझते हैं।
ब्रह्मा जी तप किया तो पराकल्पक इतिहास के साथ साथ ऐतिहासिक पदार्थों के स्वरूप, नाम और सम्बध आदि याद आ गये । किस किस वस्तु को बनाना है, उसका स्वरूप क्या है, उसका नाम क्या है, हमारे खाने पीने पहनने और स्वास्थ्य मे उपयोग आने वाले पदार्थ उनको याद आ गये ,लेकिन बनाने की क्षमता अभी उनमें नहीं आयी । क्योंकि बनाने की क्षमता अर्थ में नहीं होती, शब्द मे होती है । ठीक वैसे ही जैसे सिमसिम शब्द ही दरवाजा खोल सकता है ।
शेष लगातार आपकी सेवा मे ……………………