
भोगयोनि मे आवश्यक ज्ञान उन्हें जन्म से ही प्राप्त होता है। जैसे बंदर के बच्चे को वृक्ष पर चढ़ना या माता के पेट से चिपक रहना सिखलाना नहीं पड़ता । गाय के बछड़े को तैरना कब सिखाया जाता है? प्रत्येक पक्षी अपनी परम्परा के अनुसार ही घोंसला बनाना किससे सींखता है ? बतख का शिशु अण्डे से निकलते ही तैरने लगता है। कबूतर और बुलबुल को आप बया पक्षी के साथ बरसों पालकर ( रखकर) देख ले, बया के समान सुदृढ़ कलापूर्ण घोंसला बनाना तो दूर ,इन्हें कोई अटपटा बंद घोंसला भी बनाना नहीं आयेगा, बहुत ही थोडी मात्रा में पशु पक्षी सिखलाने पर बहुत कुछ सीख लेते है, किंतु उस शिक्षा को अपने काम मे लेना इन्हें कदाचित ही आता है।ये अपने ढंग पर ही काम करते हैं।
जबकि मनुष्य के बच्चे की अवस्था सर्वथा भिन्न है । वह कर्मयोनि मे आया है ; अतः उसे कुछ भी सिखलाकर भेजा नहीं गया ।सब उसे यहीं सीखना है । परिस्थिति के अनुसार रह लेने और सींख लेने की क्षमता उसे दी गयी है । मनुष्य जल में तैर सकता है , वृक्ष पर चढ़ सकता है, किंतु कब ? जब उसने सीखा हो । अन्यथा मनुष्य जल मे डूब जाता है । इसी प्रकार वृक्ष पर चढना उसने नहीं सीखा है तो चढ़ नहीं पाता है । मनुष्य के बच्चों की कोई भाषा नहीं ,जो भाषा सिखलायी जाय , उसे सीख लेगा ।
भेड़ियों के द्वारा पाले गये मनुष्य के बच्चे, के बारे मे अपने सुना होगा कि वे भेड़ियों की भाँति हाथ पैरो से चलने मांस खाने और भेड़ियों के समान गुर्राते मिले ।
हिरणों द्वारा पाले गये मनुष्य के बच्चे घांस चरते और हिरणों की गति से छलांग लगाते देखे गये ।
अर्थात मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार अपने को बना सकता है । यहां संगत का असर कितना होता है आप समझ सकते है। और आदमी को सब कुछ जन्म लेकर सीखना पड़ता है । शेष अगले भाग में लगातार आप सभी के लिए…….