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” जो लोग, इस जगत में स्वार्थ के लिए, परार्थ के लिए या मजाक के लिए भी कभी झूठ नहीं बोलते, उन्हीं को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।”
युधिष्ठिर ने संकट के समय एक ही बार दबी हुई आवाज से ” नरो वा कुन्जरो वा ” कहा था । इसका फल यह हुआ कि उसका रथ, जो जमीन से चार अंगुल ऊपर चला करता था,अब साधारण लोगों के रथों के समान धरती पर चलने लगा और अंत में एक क्षण-भर के लिए उसे नरकलोक में भी रहना पड़ा ।
दूसरा उदाहरण अर्जुन का ,यद्यपि अर्जुन ने भीष्म का वध शास्त्र धर्म के अनुसार किया था, तथापि उसने शिखण्डी के पीछे छिपकर यह काम किया था।इसलिए उसको अपने पुत्र बभ्रुवाहन से पराजित होना पड़ा। अतः झूठ का फल दुःख भोगना ही पड़ता है ,फिर भी लोग बचाव हेतु शास्त्र के इस श्लोक की आड़ लेकर झूठ बोल लेते हैं।
“न नर्मयुक्तं वचनं हिनस्ति न स्त्रीषु राजन्न विवाह काले ।
प्राणात्यये सर्वधनापहारे पन्चानृतान्याहुरपातकानि”
अर्थात ” हंसी में, स्त्रीयों के साथ, विवाह के समय, जब जान पर आ बने और सम्पत्ति की रक्षा के लिए झूठ बोलना पाप नहीं ” ।