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आप एक बीज बोते है या एक वृक्ष लगाते है तो क्या वह एक ही फल देता है ?
जितना लगाया जाय उतना ही मिले तो कोई व्यापार क्यों करे और कारखाने क्यों स्थापित करे। कर्म का फल किये गये से बहुत अधिक होता है, यदि अनुकूल संयोग तो सैकड़ो गुने फल और प्रतिकूल संयोग तो बोंयाबीज भी नष्ट हो जाता है। अनुकूल संयोग क्या है- देश ,काल, पात्र, तथा कर्ता भाव एवं कर्म करने की विधि:- (१) जिस खेत मे बीज बोना है, वह उपजाऊ होना चाहिये।
(२) तीर्थ मे किया गया दान पुण्य बहुत अधिक फल देता है।
(३) खेत उपजाऊ होने पर भी – मौसम विपरीत नहीं हो।
(४) पात्रता (1) चोर बदमाश को थप्पड़ मारते हैं
(2) साधारण मनुष्य को थप्पड़ मारते है ।
(3)पुलिस वाले को थप्पड़ मारते हैं (4) न्यायाधीश को थप्पड़ मारते हैं।
यहां एक ही कार्य के अलग अलग फल है ।
(अ) एक भूख से मरते को रोटी का टुकड़ा पुण्य है। (ब) धनी को शिष्टाचार वश स्वादिष्ट भोजन खास पुण्य नहीं।
(5) परिस्थिति (अ) अरबपति के कुछ सहस्र रुपये दान का वह पुण्य नहीं,
(ब) जो एक कंगाल के द्वारा किये गये पांच पैसे का है।
अंत मे कर्ता भाव – एक भिखारी को झिड़क कर तिरस्कार पूर्वक उससे पिण्ड छुडाने को आप एक पैसा फेंक देते हैं यह पुण्य नहीं है।
वहीं पैसा उसी भिखारी को आप सत्कार पूर्वक मीठे वचन कहकर श्रद्धा से देते है तो पुण्य हुआ।