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आज हम कर्मफल के इस भाग में कर्म और फल अर्थात कर्मयोनि और भोगयोनि को लेकर आप कृपया विचार जरूर करें ,क्योंकि मनुष्य ही सबसे ज्यादा रिस्क पर है। कैसा जोखिम है आइये विज्ञानिक भाषा मे समझते हैं।
देवता, सिद्ध, यक्ष-राक्षस , ये सब कर्म करने में मनुष्य से कहीं अधिक समर्थ हैं। और कर्म तो क्षुद्र कीट तक करते हैं। ऐसी दशा मे केवल मनुष्य ही कर्मयोनि क्यों?
पृथ्वी के प्राणियों का विभाजन ३ प्रकार का है।
१- ऊर्ध्व स्त्रोत अर्थात वृक्षादि वनस्पति ये जड़ो से रस ग्रहण करते हैं और वह रस ऊपर की ओर जाकर उन्हें पुष्ट करता है। इसमें वे विकासोन्मुख हैं, प्रकृति उन्हें ऊपर ले जा रही है।
२- तिर्यकस्रोत अर्थात पशु – पक्षी आदि , ये जो आहार ग्रहण करते हैं, वह उनके शरीर में आड़े चलता है। प्रकृति इसके द्वारा सूचना देती कि ये मध्यमावस्था में हैं। इसका मतलब यह हैं कि ये ऊपर भी जा सकते हैं और नीचे भी ।
३- अधःस्रोत अर्थात मनुष्य, ये मनुष्य जो आहार मुख से ग्रहण करता है, वह नीचे की ओर जाता है। प्रकृति इस प्रकार सूचना देती है कि उसकी विकास की चरम सीमा यहाँ हो चुकी।यहाँ प्रयत्न करके यदि तुम जन्म- मरण से छूट नहीं जाते, प्रकृति के प्रशासन से परे नहीं पहुंच जाते तो प्रकृति अब तुम्हें नीचे ले जानेवाली है।अतः स्वयं प्रयत्न करके प्रकृति प्रशासन से परे होना है।
पृथ्वी के प्राणियों मे मनुष्य का बच्चा सर्वथा अशिक्षित उत्पन्न होता है जबकि अन्य प्राणियों के शिशु अपने जीवन – निर्वाह के लिये आवश्यक संस्कार माता के उदर से लेकर उत्पन्न होते हैं,
शेष अगले भाग में , आपकी सेवा में लगातार……..