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“अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतकर्म शुभाशुभं “
रामायण के अनुसार मनुष्य का कोई कर्म भले ही अज्ञानवश ही क्यों न किया हो निष्फल नही जा सकता।अतः भोग के बिना कर्म का विनाश नहीं।
शान्तिपर्व में भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा है कि ” हे राजा यदि यह देख पड़े कि किसी मनुष्य को उसके पापकर्मों का फल नही मिला तो समझ लेना चाहिए कि उस को उसके पुत्रों, पौत्रों और प्रपौत्रों को भोगना पड़ेगा।