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” कर्मफल सिद्धांत संपूर्ण ब्रह्मांड में लागू “
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देवी भागवत पुराण ( 9/27/18-20 ) मे कहा गया है, जीव अपने शुभ कर्मो की सहायता से इन्द्रपद प्राप्त कर सकता है, वह हरि का सेवक हो सकता है। आवागमन के चक्र से मुक्त हो सकता है, समस्त सिद्धियां प्राप्त करता हुआ अमरत्व पद तक पहुंच सकता है। सालोक्य मुक्ति का अधिकारी बन जाता है।
वह देवता, राजा, शिव,गणेश और जो कुछ चाहे बन सकता है जब मन अपूर्व शक्तियों से विभूषित किया गया हो।
शक्तियों का लाभ मनुष्य तभी उठा सकता है जब उसे प्रकृति के नियमों के अनुकूल चलाया जाये।
कुरान कहती है― पृथ्वी मे विचरण करो और देखो कि उस अल्लाह ने किस प्रकार जीवों को जन्म दिया है।इसके पश्चात ( सृष्टि की दूसरी आवृत्ति होने पर ) वह उन्हें फिर से कर्मानुसार जन्म देगा क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान है।
सेंट जान की बाइबिल ( ११वें अध्याय )
मुझे निश्चित रूप से ज्ञात है कि जीसस पिछले जन्म में एलीसियस थे,तथा जीसस के गुरु ” जान दि बैप्टिस्ट एलीजा” थे ।
हिन्दू धर्म में वेदशिरा श्राप वश अगले जन्म में कालियानाग एवं अश्वासिरा अगले जीवन मे काकभुशुण्डिजी बने।त्रेता युग की मन्थरा ,द्वापरयुग मे पूतना बनी।बौद्ध धर्म कहता है– ” हे भिक्षु!ध्यान कर और सावधान रह,अपने चित्त को खुशी की ओर न ले जा, ताकि तुझे बेपरवाही के बदले नरम लोहे का गोला न निगलना पड़े। ( धम्मपद व ३७१ )
जो मिथ्या भाषण करता है वह नरक मे जाता है ( वचन )
पाइथागोरस (Pythagoras ) -दुष्कृत आत्माएं निम्न पशु योनि मे जाती हैं।
प्लूटार्क तथा सालोमश ( Plutark and Solomon )- सभी कर्मफल पुनर्जन्म पर आस्था रखते हैं।
आर्फयूस ( Orpheus)-पापमय जीवन बिताने पर आत्मा कर्मफल अनुसार अगले जन्म मे पशु तथा कीट के शरीरों मे रहना पड़ता है।
नोवलिस( Novalis ) -जीवन है कामना और कर्म है उनके परिणाम।
प्लेटो (plato)और सुकरात भी कर्मफल को मानते थे साथ ही साथ कर्मफल भोगने हेतु पुनर्जन्म भी ।