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कर्मफल के द्वितीय वर्गीकरण मे:- (अ) संचित कर्म वे है जो पिछले दिनों मे हमने किये हैं पर उनका फल अभी नहीं मिला। (ब) प्रारब्ध माने कर्मफल जो अभी मिल रहा है यही भाग्य है अंकुर निकल आये है। (स) जो कर रहे है या करने का विचार रखते है ,अर्थात वर्तमान के वो कर्म जिनका फल भविष्य में या अगामी जन्मो मे मिलेगा, क्रियमाण कर्म हैं।
कर्मो के तृतीय वर्गीकरण मे:- (अ) द्रिध कर्म – जो हस्तांतरित नही किये जा सकते अर्थात भाग्य के अनुसार फल मिलता ही मिलता है बुरे होने पर अनिष्ट है। (ब) अद्रिध – कर्म मे वे कर्मफल जिन्हें किन्हीं उपायों द्वारा टाला जा सकता है।
(स) द्रिध द्रिधदी – जब कर्म का फल होता है तो समझ मे नहीं आता कि इस जीवन में दैवीय शक्ति का प्रभाव अधिक है अथवा पुरुषार्थ अधिक है, पर ऐसे फल पर विजय उनकी शान्ति कराने या उचित प्रकार से आराधना करने से पाई जा सकती है।
चतुर्थ वर्गीकरण मे:- (क) श्रेयस कर्म:- वे कर्म जो हम अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करते हैं।
(ब) प्रेयस कर्म– प्रेयस कर्मो से हमे कुछ समय के लिए आनंद अनुभव होता है और हमारी इन्द्रियों को सुख का अनुभव होता है।