May 14, 2019

कर्मविपाक संहिता और पुनर्जन्म – भाग 2

 6,367 total views,  1 views today

कर्म विपाक संहिता और पुनर्जन्म -भाग 2
***********************************
पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र “प्रथम चरण” मे जन्म लेने वाला
#########################
सौराष्ट्र देश मे शोभन गांव के बीच धन धान्य से युक्त मोहन नामक क्षत्रिय रहता था। सुलक्षणों से युक्त सती स्वरूपिणी इसकी स्त्री थी,मोहन वैश्य वृत्ति मे लीन होकर सदा व्यापार करता था।इसने व्यापार के निमित्त बहुत से बैलों को पाला था उनमें से दो परस्पर मे बंधे बैल कुएं में गिर गये और दोनों बैल रात्रि में मर गये और वह मोहन वहां नहीं गया, न धन के गर्व मे पाप माना, यह मोहन सम्पूर्ण कर्म तमोगुण से युक्त होकर करता था। इस तरस बहुत समय बीतने पर प्रथम उसकी मृत्यु हुई और पीछे से महालोभिनी स्त्री भी मर गई। दोनों को हजारों हजारों वर्षों तक नरक भोगकर सरट योनि को प्राप्त हुआ, इस योनि को भोगकर बैल की योनि को प्राप्त हुआ। अब बैल की योनि भोगकर इस जन्म मे मध्यप्रदेश में जन्म हुआ या रहता है। पूर्व जन्म की ही स्त्री इसे मिलती है, काकबन्ध्या स्त्री होती है, तथा उपाय कराने पर पुत्र वाली हो जाती है।

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र ” द्वितीय चरण “मे जन्म लेने वाले की पूर्व जन्म मे स्थिति :-
$$$$$$$$%%%%%%%$$$$$$$$$$$
कर्णाटक मे एक बढ़ई रहता था, यह काष्ठ को चीरकर बेचता था और अपने घर का काम करता था। इस बढ़ई ने अपने गोत्र की कन्या से मैथून किया और चिरकाल के उपरांत मृत्यु को प्राप्त हुआ, इसके पीछे कुलटा और व्यभिचारिणी इसकी स्त्री भी मर गई, मृत्यु उपरांत नरक पीड़ा मिली। फिर मुर्गे की योनि मिली।मुर्गे की योनि भोगने पर चकवा हुआ । चकवे की योनि भोगकर अब अतिपूज्य देश भारत मे जन्म हुआ है। पूर्व जन्म में ये माता पिता से शत्रुता करता था, पूर्व जन्म में इसने वृक्षों को काटा है इसलिए शरीर में रोग ज्यादा होते हैं और सदा कमर मे दर्द रहता है। पूर्व जन्म पुत्री समान स्त्री के साथ गलत काम किया जिसका दण्ड स्वरूप पुत्र की मृत्यु हो गयी।
स्त्री को काकबन्ध्या दोष लगा,अब रातदिन कष्ट मे रहता है। गोदान करें बाग बगीचे लगवाने चाहिए, जिससे पुत्र की प्राप्ति होगी।

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र “तृतीय चरण ” में जन्म और पूर्व जन्म :-
##########################
सिंघल नामक द्वीप में सिंहपुर गांव में एक वैष्णव टीका रामनामक कायस्थ रहता था। सूर्यानाम वाली विशालनयना सुन्दरी और पतिव्रता उसकी स्त्री थी, वह नित्य देवता और अभ्यागतों का पूजन किया करती थी।और कार्तिक, माघ तथा वैशाख के महीने में दीपदान करती थी, किसी समय दैवयोग से तीर्थ यात्रा के लिए आकर बहुत से सुवर्ण से युक्त एक सुनार सिंहनगर में बसने लगा। टीका रामनामक कायस्थ से और उस सुनार से परस्पर में प्रीति हो गई। इस सुनार के कमल के समान मुखवाली एक कन्या थी,यह सुनार की कन्या दैवयोग से टीका राम कायस्थ की स्त्री हो गई और बाप का जितना धन.था वह सब हर लिया इससे सुनार मर गया। टीका राम कायस्थ ने अपनी स्त्री और पुत्र आदि छोड़ दिया, और सुनार की लड़की के साथ रहने लगा। इस गलत कार्यो से उसे कुम्भीपाक नरक मिला। फिर मृग योनि मिली,अब मनुष्य योनि मिली। पर पूर्व जन्म के कर्मो से पुत्र होते हैं और मर जाते हैं वह खुद भी रोगों से जूझता रहता है। कठोर स्वभाव वाला दुख भोगता है।

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के “चतुर्थ चरण ” मे अभी जन्म और पूर्व जन्म :-
*************************************
नर्मदा नदी के दक्षिणी किनारे नित्य कर्म करने वाला वेदपाठी ब्राह्मण बसता था। यह प्रति दिन शिवपुरी मे पाठ करता और बालकों को पढ़ाया करता था, इस ब्राह्मण की दो स्त्रियां थी,यह छोटी स्त्री से प्रेम करता था और बड़ी को.इसने छोड़ दिया था। जब ब्राह्मण की मृत्यु हुई तब इसकी बड़ी स्त्री इसके साथ चिता बना कर सती हो गई। दोनों ने स्वर्ग लोग मे बास किया। पुण्य क्षीण होने पर अब मनुष्य योनि मे जन्म लिया। अब वह धन धान्य से युक्त है पर वंश हीन है।
उपाय से वंशलाभ होगा ।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *