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” कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का जन्म महा अशुभ “
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पक्षे असिते चतुर्दश्यां जन्म चेदशुभं स्मृतम्।
षडि्भर्भक्ते चतुर्दश्या माने तु प्रथमे यदि।।
जनुर्भवेच्छुभं तर्हि द्वितीये चेन्मृतः पितुः।
तृतीये मातृमरणं चतुर्थे मातुलक्षतिः।।
पंचमे वंशनाशः स्यात् षष्ठे सम्पत्तिसंक्षयः।
अपि वा त्मविनाशः स्या-दतः शान्ति समाचरेत।।
अर्थ:- कृष्णपक्षीय चतुर्दशी में जन्म महा अशुभप्रद होता है। संपूर्ण चतुर्दशी के मान को ६ से विभक्त करें। प्रथम भाग में जन्म होने से शुभ, द्वितीये भाग मे जन्म होने पर पिता का मरण, तृतीय भाग में जन्म होने से मातृमरण, चतुर्थ भाग मे जन्म होने से मामा का विनाश, पंचम भाग में जन्म होने से वंशक्षय, तथा षष्ठ भाग में जन्म लेने से सम्पत्ति क्षय अथवा आत्मविनाश होता है। अतः शान्ति परम आवश्यक है।
शान्ति के लिए शिवजी की स्वर्णमयी प्रतिमा का वारुण मन्त्रों से आवाहन ‘ त्र्यम्बकं यजामहे ‘ आदि मंत्र से पूजन,पुनः तत्तदुक्त मत्रों से आग्नेय कोण स्थित घट से आरम्भ कर भक्ति पूर्वक पूजन एवं सूक्तद्वय का पाठ करना चाहिए।
पुनः’कद्रुद्रे’त्यादि पुरुषसूक्त का जप अन्तताः रुद्र का अभिषेक’ नवग्रहों का भक्ति पूर्वक पूजन, समित् घृत चरु,तिल,सर्षप का प्रज्वलित अग्नि में १०८ बार या २८ बार हवन करें।
त्र्यम्बकेश्वर आदि मंत्र से अग्नि में तिल का प्रक्षेप करना चाहिए तथा व्याहृतियों से ग्रहों का हवन करना चाहिए। अनन्तर पुत्र सहित दम्पत्ति का कलशीय जल से अभिसिंचन आचार्य करें। ब्राह्मणों का भोजन,यथाशक्ति कर्मान्त मे दक्षिणा दान करें तो अवश्य कल्याण की प्राप्ति होती है।