March 12, 2019

चेतना कैसे काम करती है ?

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प्रश्न:- चेतना कैसे काम करती है ?
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उत्तर ― चेतना क्या है ,पहले यह जानना जरूरी है। चेतना के द्वारा उसके जीवित रहने की वास्तविकता व्यक्त होती है, चेतना के कारण उसे सभी प्रकार की अनुभूतियां होती हैं। चेतना व्यक्तिगत विषय मे,तथा वातावरण के विषय मे ज्ञान कराती है। मनुष्य केवल चेतना से उत्पन्न प्रेरणा के कारण ही कोई काम कर सकता है। शरीर चेतना के कार्य करने का यंत्र है। यदि यंत्र टूट जाय तो चेतना अपंग हो जाती है।
इसके विपरीत चेतना ही सभी पदार्थों को, जड़, चेतन,शरीर, मन,निर्जीव-जीवित,मष्तिष्क-स्नायु आदि को बनाती है, उनका स्वरुप निरुपित करती है।अतः मनुष्य शरीर द्वारा चेतना को समझना ,या चेतन को अचेतन तत्व के द्वारा समझना अर्थात उसमें कार्य कारण सम्बंध जोड़ना सर्वथा अविवेक है। चेतना स्वयं प्रकाश तत्व है। चेतन एक वृत्ति है।
शुद्ध चेतना अर्थात स्पंदन अविनाशी है।

आइये आपको अब चेतना कैसे काम करती है यह समझाने का प्रयास करते है।
सृष्टि का प्रपंच है ज्ञाता-ज्ञान-ज्ञेय। अर्थात आत्मा, आत्मा की रश्मियाँ, और आत्मा का अंश ।
चित, चेतना और जड़। अंत मे अव्यय-अक्षर-क्षर।यहां क्षर पुरुष मैं आपको अक्षर के बारे मे समझाने का एक प्रयास कर रहा हूँ। ये मैं इसलिये कर रहा हूँ क्योंकि मै आत्मा का अंश ,आत्मा की रश्मियों द्वारा आत्मा को जान गया हूं। ठीक वैसे ही जैसे लोग सूर्य रश्मियों द्वारा सूर्य मे लीन हो सकते हैं। ये प्रज्ञा ही चेतना है। शब्द अर्थ के रुप मे प्रकट होता है, जो नाम आयेगा वही रुप हो जायेगा। लेकिन शुरू मे आकाश था और नाद भी। प्राण थे और स्पंदन भी ।

आप अब पूरी चैतन्यता से गौर करें चेतना कैसे काम करती है― आत्मा की परछाईं प्राण है।
प्राण और चित्त मिले हुये हैं ठीक वैसे ही जैसे तिलो मे तेल, पुष्प मे गंध, या अग्नि में उष्णता।
अहंकार का बीज चित्त है एवं मन+प्राण+ वाक आपस मे मिले हुये हैं। यहा प्राण मन को गति देता है जबकि वाक प्राण को स्वरुप देता है । अर्थात मन का सारा व्यापार वाक से ओतप्रोत है।
अभी कहा गया है प्राण मन को गति देता है यही गति चेतना है। यही स्पंदन हैं ,प्रज्ञा है जो सृष्टि की हर चीज मे है।यही एक जबरदस्त इन्टेलिजेन्स है।
चेतना न भौतिक है, न विद्दुतीय और न न विद्युत चुम्बक यह आभौतिक ही है ,जिसकी गोद मे भौतिक बैठा है।मन से अधिकृत होकर प्राण शरीर मे आता है। मानसिक कार्यों का परिणाम शरीर है। मन से गठित और परिवर्तित शरीर प्राण जीवन प्रदान करता है।क्योंकि जड़ प्रकृति को प्रवृत्त कराने मे किसी चेतन की अपेक्षा होती है। ये काम प्राण करता है । मन के भाव ही व्यक्ति को चलाते हैं, मन की इच्छा पूर्ति के लिए ही शरीर और बुद्धि कार्य करते हैं। आपको फिर याद दिला दू कि मन,प्राण, और वाक आपस मे मिले हुये है।
वयक्ति का मन अन्नमयकोश और मनोमयकोश के आगे विज्ञानमयकोश मे प्रवेश करने लगता है तब प्रज्ञा जाग्रत होने लगती है। यहा प्रज्ञा माने चेतना।
और वह अपने को समझने लगता है।चेतना के कारण सभी प्रकार की अनुभूतियां ज्ञान,भाव,क्रिया ।
प्राणो मे संस्कार का सृजन और समय आने पर यह संस्कार मन मे, मन से ईच्छा मे,और ईच्छा तीव्र होकर क्रियात्मक आचरण मे।
चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है, जिसका संबंध चेतना से है।चित्त मन के सोलह आयामों मे से एक है। ऐ आठ तरह की स्मृतियाँ और आठ तरह की प्रकृति।
आत्मा उर्जा है, प्रकाश है।
चेतना वृत्ति है, स्पंदन है।
मन का संबंध आत्मा से है।
जबकि मस्तिष्क का संबंध शरीर से है।
मन सूक्ष्म शरीर का भाग है।
मस्तिष्क स्थूल शरीर का भाग है।
चेतना केवल निरीक्षण करती है, मन के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं। जैसे आत्मा और शरीर का जोड़ा है। वैसे ही मन और मस्तिष्क का जोड़ा है।
यहा जैसे आत्मा शरीर नहीं, वैसे ही मन भी मस्तिष्क नहीं । सोचना, विचारना, ईच्छा, अनुभव सब मन मे होते है पर स्मृति रुप मे मष्तिष्क मे स्टोर होते हैं।
चेतना आत्मा का स्वरुप है।
चेतना मन की वृत्ति है।
चेतना चित्त का सकारात्मक गुण है।
चेतना को भाव भी कहते है।
चेतना के बिना भी आत्मा रह सकती है।

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