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प्रजा की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण जब द्वारका चले गये, तब राधा जी की शादी यशोदा के सहोदर भाई सायन वैश्य ( यादव ) से हो गई, राधा जी ने अपने दाम्पत्य जीवन की सारी रस्में निभाई और बूढ़ी हुई, लेकिन उनका मन तब भी कृष्ण के लिए समर्पित था।राधा जी ने पत्नी के तौर पर अपने सारे कर्तव्य पूरे किए और सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कष्ण से मिलने द्वारका पहुंची तो उन्हें पता चला कि कृष्ण की शादी रुक्मिणी और सत्यभामा से हो गयी है पर यह सब जानकर दुःखी नहीं हुईं।
जब कृष्ण ने राधा को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए दोनों संकेतों की भाषा मे एक दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे।
राधा जी को द्वारका मे कोई नहीं पहचानता था,राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल मे एक देविका के रुप मे नियुक्त किया।
राधा दिन भर महल मे रहती और मौका मिलते कृष्ण के दर्शन कर लेतीं थी। परन्तु श्रीकृष्ण के साथ पहले की तरह आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थी, अतः राधा ने महल से दूर जाना तय किया यह सोचकर कि दूर जाकर दोबारा श्रीकृष्ण से गहरा आत्मीय संबंध स्थापित कर पायेंगी। धीरे धीरे समय बीता राधा बिल्कुल अकेली और कमजोर हो गई , और उन्हें श्रीकृष्ण की आवश्यकता पड़ी ऐसा सोचते ही कृष्ण उनके सामने प्रकट हो गये और आखिरी ईच्छा पूंछी तो राधा ने कहा कि वह उन्हें आखिरी बार बाँसुरी बजाते हुए देखना चाहती है ,तब कृष्ण बाँसुरी बजाने लगे ,बजाते रहे और राधा ने शरीर त्याग दिया।कृष्ण भी दुःख बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने बाँसुरी तोड़कर झाड़ियों मे फेक दी ,फिर जीवन भर बाँसुरी तो क्या कोई भी बाद्ययंत्र नहीं बजाया।
ब्रह्म वैवर्त पुराण -ब्रह्मखण्ड के ५वें अध्याय श्लोक २५,२६
प्रकृतिखण्ड ४८ अध्याय
प्रकृतिखण्ड ४९ अध्याय -श्लोक ३५,३६,३७,४०,४७
पद्म पुराण, गर्ग संहिता गोलोकखंड, विश्वजित खंड ४९ अध्याय ।
प्रमाण :-
” अतिते द्वादशाब्दे तु दृष्टवा तां नवयौवनां ।
सार्धं रायाण वैश्येन तत्सबंधम चकार सः।। “
कहीं सायन वैश्य और कहीं रायाण वैश्य(यादव) और कहीं कहीं रायन गोप लिखा है। अंत मे कहीं कहीं अयन घोष भी भी राधा के पति का नाम हैं।