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ब्रह्मा कल्प का आरम्भ अर्थात ब्रह्मा का एक दिन प्रारम्भ होने को सृष्टि तथा ब्रह्मा जी का एक दिन समाप्त होने को ” प्रलय “कहते है। यह 04 अरब 32 करोड़ सौर वर्ष बाद सृष्टि का ब्रह्मा मे लीन होना प्रलय है। ठीक इतने ही समय की रात्रि (01कल्प की रात्रि) व्यतीत होने पर पुनः ब्रह्मा जी इच्छा से वैसी ही सृष्टि का सृजन होता है।
” यथा धाता पूर्वम अकल्पयत ”
परन्तु जब ब्रह्मा जी आयु 100 वर्ष की पूर्ण होती है तब “महा प्रलय ” कहते है। यह समय 311 खरब 40 अरब वर्ष का होता है। इस समय समस्त विश्व का #परमात्मा मे लीन# होता है।यहां पर अब सृष्टि का सृजन भगवद् ईच्छा से होता है। जबकि प्रलय के बाद सृष्टि सृजन ब्रह्मा की ईच्छा से होता है, क्योंकि सृष्टि भी ब्रह्मा मे ही लीन होती है।
प्रलय → 04 Billion 32Million years after
महाप्रलय→ 311 Trillion 40 Billion years after
यह मान सौर वर्ष मे लिया गया है।
इसमें एक ब्रह्माण्ड का विनाश होता है। और सिर्फ ब्रह्मा जी आयु समाप्त होती है, विष्णु और शिव की नहीं, क्योंकि जब सात ब्रह्मा जी की आयु पूर्ण होती है तब एक विष्णु जी आयु पूरी होती है। और जब 07 विष्णु की आयु पूरी होती है तब एक शिव जी आयु पूरी होती है।
ऐसे 70000 बार पुनरावर्ती होने पर एक सदाशिव की आयु पूरी होती है जिसे परम् ब्रह्म या अक्षर पुरुष कहते हैं। ये सदाशिव ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश(शिव) के जन्म दाता है। इन तीनों की मा दुर्गा जी है।
सदाशिव को महाशिव महाविष्णु,ब्रह्मकाल, ज्योति निरंजन, अक्षरब्रहम् के नाम से जाना जाता है । ऐसे 1000 बार सदाशिव का चक्र पूरा होता है तब परम् महाशिव का समय होता है इन्हें अव्यय ब्रह्म कहते है।
शिव ― 01 ब्रह्माण्ड के मालिक = ब्रह्मा+विष्णु+महेश
सदाशिव ―21 ब्रह्माण्ड के मालिक = ब्रह्म।
परमशिव― 07 शंख ब्रह्माण्ड के स्वामी= परब्रह्म।
परम् परम् शिव ― अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड नायक=पूर्ण ब्रह्म
भम्र न रहे अतः पूर्णब्रह्म→ भगवान श्रीकृष्ण= अव्यय।
परब्रह्म → भगवान श्रीराम। यही शब्द ब्रह्म है =अक्षर।
ब्रह्म →ज्योतिनिरंजन शिव परमात्मा =आत्मा परम पुरुष
ब्रह्मा → क्षर पुरुष है।
समय और स्थान की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भौतिक वादी एवं ब्रह्मांड विज्ञानी कहते है समय की शुरुआत बिग बैंग सिद्धांत के साथ हुई, यह सिद्धांत कहता है कि हमारा ब्रह्मांड 13.8 अरब वर्ष(Billion years) साल पहले शुरू हुआ था।
वेदांत के अनुसार काल या समय की कोई शुरुआत नहीं है।यह साश्वत है। भगवत गीता ११.३२ मे भगवान श्रीकृष्ण कहते है-“समय मैं हूं” इस प्रकार समय की कोई शुरुआत नहीं और न कोई अंत है