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“ ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म एक विश्लेषण ” शादीशुदा जिन्दगी बरबाद अन्त मे तलाक या अलगाव”
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मूल ज्येष्ठा की, मघा आश्लेषा की, रेवती अश्विनी की संधि मे प्रहर ( साढ़े सात घड़ी पर्यन्त ) गण्डान्त होता है। यह प्राणियों के लिए अधिक अनिष्टप्रद होता है। ज्येष्ठा, मूल की सन्धि की एक घड़ी अभुक्त संज्ञक है। उस अभुक्त घड़ी में उत्पन्न पुत्र,पशु और नौकर कुल के नाशक होते हैं।
नारद जी के मत से अभुक्त-मूल गण्डांत की घड़ियां चार हैं। वह ज्येष्ठा की अन्त की दो घड़ी और मूल की आदि की दो घड़ी, ऐसे चार घड़ी का अभुक्त मूल होता है। यह अत्यंत खराब है।
ज्येष्ठा के प्रथम चरण में उत्पन्न बालक ज्येष्ठ भाई का शीध्र नाश करता है। यदि द्वितीय चरण मे पैंदा हो तो छोटे भाई का नाश करता है। तृतीय चरण में उत्पन्न हो तो जातक स्वयं मरता है। मतान्तर से ज्येष्ठा के तृतीय चरण में माता को और चतुर्थ चरण में उत्पन्न पिता को नष्ट करता है। विशेष फल के लिए ज्येष्ठा के भभोग की सम्पूर्ण घड़ियों में दश का भाग देकर १० खण्ड बनाए। यदि पहले खण्ड में उत्पन्न बालक हो तो नानी का, द्वितीय खण्ड में उत्पन्न हो तो नाना का, तृतीय खण्ड में मामा का,चतुर्थ खण्ड में जन्म तो माता का, पांचवें खण्ड में जन्म हो तो स्वयं का, छठे मे एवं सातवें खण्ड में जन्म तो कुल का नाश करता है। आठवें खण्ड में भाई का नाशक है। नवम खण्ड श्वसुर का संहार करता है।दसवां भाघ सबका नाश करता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र मे उत्पन्न कन्या पति के बड़े भ्राता का नाश करती है। तथा ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न लड़का हो तो वह बड़े साले का नाश करता है।
विशेष ज्येष्ठा नक्षत्र और मंगलवार के योग मे उत्पन्न हुई कन्या अपने ज्येष्ठ भाई का नाश करती है।मूल नक्षत्र छः हैं इनमें अश्विनी, मघा,मूल ये केतु के नक्षत्र हैं जो शुरुआत में चरण मे खराब है जबकि आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती ये बुध के नक्षत्र हैं जो अन्तिम चरण मे खराब फल देते हैं।इन्हें अन्य प्रकार से भी समझे कि जब कोई आश्लेषा या मघा नक्षत्र मे जन्म लेता है उसे रात्रिगण्ड कहते हैं। जब कोई ज्येष्ठा नक्षत्र और मूल नक्षत्र मे पैदा होता है तो उसे दिवागण्ड कहते हैं। एवं यदि कोई रेवती नक्षत्र और अश्विनी नक्षत्र मे पैदा होने पर सान्ध्यगण्ड कहते हैं।
– रात्रिगण्ड माता के लिए खतरनाक।
– दिवागण्ड पिता के लिए खतरनाक।
– सांध्यगण्ड बच्चे के लिए खतरनाक होता है।
– रात्रिगण्ड हो और रात्रि में पैदा हो तो बहुत ही खतरनाक फल होता है।
आइए ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातकों के जीवन मे घटी घटनाओं के बारे में जानते हैं :-
(1) लग्न कुम्भ, सूर्य मकर राशि में, चन्द्र और राहु तथा शनि वृश्चिक राशि में, बुध और शुक्र धनु राशि में, गुरु कन्या राशि में, केतु वृष राशि में, तथा मंगल मेष राशी मे है। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मी इस लड़की की शादीशुदा जिंदगी बहुत ही दुखदायी थी। शादीशुदा जिंदगी के बाद बाहरी लोगों से संबंध तथा पति की नपुंसकता भी अंत मे तलाक का कारण बनी। ( DOB 21/01/1957, TOB 09:00AM)
(2) दूसरा उदाहरण मे जातक का जन्म धनु लग्न में, तथा जन्म ज्येष्ठा नक्षत्र में ग्रहों की स्थिति सूर्य+बुध+शुक्र – मिथुन राशि में। चन्द्र वृश्चिक राशि में, मंगल -सिंह राशि में। गुरु- वृष राशि में। शनि – कर्क राशि में, राहु -तुला एवं केतु मेष राशि में है।
इस लड़की की कुण्डली मे सप्तम भाव मे बैठे सूर्य,बुध,शुक्र इतने नुकसान दायक नहीं है जितना चन्द्र द्वादश मे ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण मे वृश्चिक राशि में होना। इस लड़की की शादी शुदा जिन्दगी बहुत ही दुखदायी थी शादी के चार वर्ष बाद तलाक हो गया था।( DOB 09/07/1976, TOB 17:45 )
तीसरा उदाहरण देखते है-
(३) ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण मे जन्मी लड़की की शादी के उपरांत छः माह बाद जिन्दगी दुखदायी हो गई थी।