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ज्योतिष का उद्देश्य :-
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स्वयं का कल्याण करना, और शुभ अशुभ का निर्णय करते हुए भविष्य के प्रति संकेत करना है।
इसके २ सिद्धांत है।
१- गणित, २- फलित
१- गणित में ३ भाग (अ) करण, ( ब ) तंत्र ( स )सिद्धांत
२- फलित में ५ भाग ;
(1) जातक
(2) ताजिक
(3) ग्रह
(4) मुहूर्त
(5) शकुन/शगुन
गणित के तीन भागो मे पहले (१) सिद्धांत गणित समझते हैं– जिस गणित के द्वारा कल्प से लेकर आधुनिक काल तक के किसी भी इष्ट दिन के खगोलीय स्थितिवश गत वर्ष ,मास,दिन आदि, सौर सावन चान्द्रमान को ज्ञात करसौर सावन अहर्गण बनाकर मध्यमादि ग्रह स्पष्टान्त कर्म किए जाते है उसे सिद्धांत गणित कहते।
(२)तंत्र गणित :- जिस तंत्र द्वारा वर्तमान युगादि वर्षों को जानकर किसी अभीष्ट दिन तक अहर्गण या दिन समूहों के ज्ञान से मध्यमादि ग्रह गत्यादि चमत्कार देखा जाता है, उसे तंत्र गणित कहा जाता है।
(३) करण गणित :- वर्तमान शक के बीच मे अभीष्ट दिनों को जानकर अर्थात किसी दिन वेध यंत्रों के द्वाराग्रह स्थिति देखकर और स्थूल रूप से गृह स्थिति गणित से कब होगी ,ऐसा विचार कर तथा ग्रहों के स्पष्ट वश सूर्य ग्रहण आदि का विचार जिस गणित से होता है उसे करण गणित कहते हैं।
फलित के पांच भागों में पहला है
(१)जातक:- जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली पर विचार किया जा रहा हो ,वह उस कुंडली का जातक कहलाता है।
(२) ताजिक :- वर्ष कुंडली से फल जानने की रीति ताजिक कहलाती है।
(३) ग्रह :- ज्योतिष में ९ ग्रहों के बारे मे जानना।
(४) मुहूर्त:- किसी भी कार्य करने के लिए अत्यंत शुभ समय मुहूर्त कहलाता है।
(५) शकुन/शगुन :- किसी भी कार्य के जाते वक्त, या कार्य को शुरुआत करते समय विशेष चिन्हों/ लोगों/प्राणियों का देख कल शुभ अशुभ का निर्णय करना शकुन/शगुन कहलाता है।