881 total views, 1 views today

ज्योतिष मान जाग्रत जगत की एक दिव्य ज्योति का नाम ही जीवन है। ज्योति का पर्याय ज्योतिष है; अथवा ज्यौतिष स्वरूप ब्रह्म की व्याख्या का नाम ज्यौतिष है।
ऐतरेय ब्राह्मण ने ब्रह्म को,क्रियादामृत स्वरूप त्रयी त्रीणी ज्योतीषि नाम से पुकारा है।
” वेद रुप ज्योतिष, और ब्रह्मरुप ज्योति है “
जिसका दूसरा नाम संवत्सर ब्रह्म या महाकाल है; जो अक्षर ब्रह्म से भी उच्चारित होता है।
ज्योतिष का एक व्यक्त रुप एवं दूसरा अव्यक्त रुप है।
सृष्टि के मूल बीजाक्षरों/मूल कलाओं को एक एक जानना~ अव्यक्त रुप ज्योतिष है।
खगोलीय या ब्रह्माण्डीय ज्योतिष व्यक्त रुप है।
व्यक्त या अव्यक्त इन दोनों के आकार, दोनों की कलाएँ एक समान है।
एक बिम्ब है, तो दूसरा प्रतिबिंब।
ज्योतिष को ब्रह्म पुरुष का चक्षुः ( सूर्यः) भी कहा गया है।
” ज्योतिषामयनं चक्षुः “
” चक्षोः सूर्यो अजायत ” इसीलिए पहला और महत्वपूर्ण ग्रंथ का नाम भी ” सूर्य सिद्धान्त ” है।
ज्योतिष को पंचस्कंधात्मक माना जाता है―
१- सिद्धांत
२- संहिता
३- होरा
४- प्रश्न
५- मूहूर्त।
ज्योतिष शास्त्र में तीन प्रकार के कर्म बताऐ गये हैं।
१- संचित कर्म :- अनेक जन्मो के पाप पुण्यों द्वारा अर्जित कर्म संचित कर्म कहलाते हैं।
२- प्रारब्ध कर्म :- वर्तमान शरीर संचित कर्मो मे से जितने फल भोगना आरम्भ कर देता है उसे प्रारब्ध कर्म कहते हैं।
३- क्रियमाण कर्म :- वर्तमान शरीर द्वारा किये जाने वाले पाप पुण्यात्मक कर्मों के संचय को क्रियमाण कर्म कहलाते हैं।