
ग्रह :-
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प्राचीन भारतीय ज्योतिष में ग्रहों की संख्या सात कही गई थी― १-सूर्य, २―चन्द्रमा, ३- मंगल,४―बुध, ५― गुरु, ६― शुक्र, ७- शनि, इन सभी ग्रहों के ज्योतिषपिण्ड आकाश में दिखाई देते हैं।
बाद मे ज्योतिषियों ने अपने अनुसंधान के बल पर यह ज्ञात किया भूमण्डल के दोनों ओर पड़़ने वाली छाया भी ग्रहों के समान प्रभावकारी है, अतः उन्होंने ‘राहु‘ तथा ‘केतु‘ नामक दो छाया ग्रहों की कल्पना की।
१- “सूर्य “
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श्रीमद्भागवत के अनुसार पृथ्वी तथा स्वर्ग के बीच ब्रह्माण्ड के केन्द्र स्थान में सूर्य की अवस्थिति है। इसके द्वारा ही दिशा, आकाश, अन्तरिक्ष, भूलोक,स्वर्गलोक, नरक,रसातल तथा अन्य लोंको का एक दूसरे से विभाजन होता है। सूर्य से सब ओर २५ करोड़ योजन की दूरी तक ब्रह्माण्ड की सीमा है।
जो ज्योतिषपिण्ड सूर्य के चारों ओर घूमते अर्थात की परिक्रमा करते रहते है, उन्हें ग्रह कहा जाता है तथा जो आकाश में एक स्थान पर स्थिर बने रहते हैं उन्हें तारा कहते हैं।
यथार्थ मे सूर्य भी ग्रह न होकर तारा है, जो कि अपने अक्ष पर घूमता रहता है,जो कि ग्रहों की भांति अन्य राशियों में संचरण न करके एक ही स्थान पर बना रहता है, परन्तु भ्रमण करने की प्रतीति होने के कारण उसे ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। सूर्य स्वयं राशि संचरण करें अथवा पृथ्वी ही राशि-संचरण करते हुए उसके चारो ओर भ्रमण करें तो ज्योतिष के फलित मे कोई अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि दोनों ही संचरण २४ ही घन्टे में ही पूर्ण होंगे।,इसी कारण पृथ्वी के राशि संचरण को ही सूर्य का राशि-संचरण माना जाता हैं और उसी आधार पर उसे एक ग्रह की संज्ञा दी गई है।
विशेष― सूर्य को सब जीवों की आत्मा, सब ग्रहों का महाअधिष्ठाता तथा सर्वशक्तिमान कहा गया है। इसका रंग-गुलाबी, अवस्था-वृद्ध,लिंग-पुरुष,जाति-क्षत्रिय, आकृति-चडरस(गोल),गुण-सत्व, तत्व-अग्नि, पद-चतष्पद(पक्षी),धातु-सोना, रस-तिक्त,अधिदेवता-अग्नि प्रकृति-पित्त, स्वभाव-स्थिर,ऋतु-ग्रीष्म, रत्न-माणिक्य, वाहन-अश्व,संज्ञा-क्रूर, प्रतिनिधि पशु-लाल रंग की गाय।
सूर्य चिकित्सा तथा पदार्थ विज्ञान से सम्बन्ध रखने वाला ग्रह है।यह राजा, अधिकारी, सैनिक, कुलीन ब्राह्मण, दवाई बेचने वाला, जौहरी, अभिनेता शक्ति एवं सत्ता का अधिपति है।
सूर्य मेरुदंड, स्नायु, उदर पर प्रभाव रखने के अतिरिक्त हृदय,मस्तिष्क, नेत्र,फुफ्फुस, जठराग्नि तथा रक्त को प्रभावित करता है।
लाल रंग की वस्तुओं ऊन,तृण,पश्मीना,नारियल, सरसों, मूँगफली आदि का यह प्रतिनिधि है।
यह बबासीर, मधुमेह, क्षय,सिरदर्द, नेत्रविकार, अजीर्ण, मन्दाग्नि, अपस्मार, हैजा, ज्वर,अतिसार, खेद,कलह,अपमान आदि का भी प्रतिनिधित्व करता है।