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‘ चन्द्रमा ‘
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पदम पुराण के अनुसार चन्द्रमा महर्षि अत्रि का पुत्र है, तथा इसका जन्म अनुसूया के गर्भ से हुआ है।यह अत्यंत तीव्र गति से चलने वाला पृथ्वी के सबसे निकटतम ग्रह है।यह २७ दिन ७ घंटा ४३ मिनट तथा ११ सेकंड मे पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है, यह गेंद के समान गोल है तथा इसमें स्वयं का प्रकाश नहीं है, परन्तु यह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है, यह सूर्य के समान सदैव उदित और मार्गी रहने वाला ग्रह है।
चन्द्रमा की उत्पत्ति के सम्बंध में धारणाओं मे से एक धारणा यह भी है चन्द्रमा और पृथ्वी एक ही पिण्ड थे,बाद मे टूटकर अलग हो गया, इसके अनुसार वर्तमान प्रशांत महासागर का बेसिन वह स्थान है जहां से चन्द्रमा टूटकर अलग हुआ था। यही कारण है चन्द्रमा को मामा माना गया है।मामा का अर्थ है कि पथ्वी माता है और चन्द्रमा का उससे संबंध है।
दूसरी धारणा के अनुसार चन्द्रमा का निर्माण कहीं और हुआ और बाद मे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी की पकड़ में आ गया। एक अन्य धारणा के अनुसार मंगल जैसे बड़े ग्रह की टक्कर पृथ्वी से हुई इसके कारण जो द्रव्य निकला वह एकठ्ठा होकर पिण्ड मे बदल गया और वर्तमान स्थिति में चन्द्रमा के रूप में है। एक मान्यता है समुद्र मंथन मे लक्ष्मी के साथ साथ चन्द्रमा भी उत्पन्न हुऐ थे।
विशेष:- चन्द्रमा काल पुरुष का मन कहा गया है।ज्योतिष मे इसे स्त्री ग्रह माना है।इसका वर्ण -गौर, अवस्था-युवा, स्वरुप- सुंदर, गुण-सत्व, प्रकृति-कफ, तत्व -जल,स्वभाव-चंचल, दिशा-आग्नेय, अध्ययन में रुचि-ज्योतिष,वाहन-मृग,वार-सोमवार
यह मन,अन्तःकरण, संवेदना, विनम्रता, दयालुता, रक्त, मस्तिष्क, सहानुभूत,सौन्दर्य, कल्पना शक्ति, श्वेत वस्तुओं, मोती, भ्रमण पारिवारिक जीवन का अधिकारी है।
स्त्री,सेविका, नाविक,मद्य विक्रेता, जल रोग,कफ रोग,मानसिक विकार, नेत्र रोग,आलस्य पर अधिपत्य है।
श्रीमद्भागवत का कहना है कि सभी देवता, पितर,मनुष्य, भूत,पशु, पक्षी, सरिसृप और वृक्ष योनियों मे पुराणों का स्थापन चन्द्रमा ही करते हैं, ब्रह्मा जी की सभी मे बैठते हैं।ब्रह्मा जी के चन्द्रमा को बीज,औषधि, जल तथा ब्राह्मण का अधिपति बनाया है। चन्द्रमा के पुत्र बुध है।