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शनि ग्रह :-
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पुराणों के अनुसार ” शनि ” का जन्म सूर्य की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से हुआ है। भारतीयज्योतिष के अनुसार इसका व्यास ७१५००मील मतांतर से ७४६३२ मील है।यह अपनी धुरी पर १०.५ घंटों में घूमता है। सूर्य की परिक्रमा करने में इसे प्रायः २९.५ वर्ष का समय लगता है। सामान्यतः यह एक राशि में प्रायः २.५ वर्ष तक भ्रमण करता है।सूर्य के समीप पहुँचने पर इसकी गति ६० मील प्रति घंटा ही रह जाती है। अत्यंत मन्द गति से चलने के कारण ही इसके नाम ‘ मन्द’ तथा ‘शनिश्चर’ पड़े है।
यह आकाश मण्डल का सबसे सुन्दर ग्रह है, इसके चारों ओर तीन वलय कंकण जैसे चौड़े परन्तु एक दूसरे से अलग रहने वाले गोल चक्र है।शनि अपने इन वलयों के साथ ही आकाश में भ्रमण करता है। यह ग्रह अधिक चमकीला नहीं है।तथापि अपनी नीली आभायुक्त झिलमिल चमक के कारण यह दर्शक के मन को मुग्ध कर देता है। अन्य ग्रहों की तुलना में यह बहुत हल्का तथा बृहस्पति की तुलना में अधिक ठंडा है।
विशेष :- शनि कालपुरुष का ‘दुःख’ माना गया है। इसका वर्ण-काला, नेत्र -सुन्दर, स्वरुप-आलसी,(कृशांग,रुक्ष केश,मोटे दाँत तथा बड़े नाखून युक्त ) जाति-शूद्र,आक।ति-दीर्घ, गुण-तमोगुण, तत्व-वायु, प्रकृति-वात,स्वभाव-दारुण,वस्त्र-जीर्ण,संज्ञा-पाप,धातु-लोहा, अधिदेवता-ब्रह्मा, दिशा-पश्चिम, रस-तिक्त, रत्न-नीलम,ऋतु-शिशिर, समय-वर्ष, वेदभ्यास नहीं, विद्याध्ययन मे रुचि-कूटनीति, दर्शन शास्त्र तथा कानून, वाहन-महिष,प्रतिनिधि पशु-काला धोड़ा, मतांतर से भैसा,बकरी, दिन-शनिवार।
शनि हड्डी , पहली, मांसपेशियों, स्नायु, घुटने, पिंडली, नाक तथा केशों पर अधिपत्य है।यह भैंस,लोहा, नीलम,सीसा,तेल,तिल,उड़द,नमक तथा काले रंग की वस्तुओं का अधिपति है।यह अचल सम्पत्ति, जमीन, श्रमिक, ठेकेदारी, कल-कारखाने, मशीनरी, यातायात, छोटे दुकानदार तथा स्थानीय संस्थाओं एवं कार्यकर्ता का प्रतिनिधित्व करता है।अन्याय, ऐश्वर्य, परिश्रम,विद्या, योगाभ्यास, धैर्य, संकट,प्रभुता, व्यय, मोक्ष,पराक्रम, मोटापा आदि के संबंध में इससे विचार किया जाता है।यह प्रायः ३६ से ४२ वर्ष की आयु मे जातक पर अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है।