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राहु ग्रह :-
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पुराणों के अनुसार ‘ राहु’ का जन्म हिरण्यकशिपु की पुत्री तथा विप्रचित्ति नामक दानव की पत्नी सिंहिका के गर्भ से हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसने भी देवताओं के साथ अमृतपान कर लिया था, तब विष्णु ने सुदर्शन चक्र द्वारा इसके मस्तक को काट डाला, लेकिन अमृतपान के प्रभाव से सिर तथा धड़ दोनों ही अलग अलग जीवित रहे। सिर का नाम ‘ राहु ‘ तथा धड़ का नाम ‘केतु’ पड़ा। बाद मे दोनों अलग अलग ग्रह के रुप मे प्रसिद्ध हुये।
भारतीयज्योतिष के अनुसार आकाश में राहु तथा केतु के कोई पिण्ड नहीं हैं।इन्हें पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव की छाया मानकर छाया ग्रह के रुप मे स्वीकार किया है। ये दोनों ग्रह परस्पर ६ राशि अर्थात १८० अंश के अंतर से अन्य ग्रहों की अपेक्षा विपरीत गति से संचरण करते हैं। इन्हें एक राशि पर भ्रमण करने मे १८ महिने तथा द्वादश राशियों में भ्रमण पूरा करने मे १८ वर्ष का समय लगता है।
विशेष :- ‘राहु’ को भी कालपुरुष का ‘दुःख’ माना गया है।इसका वर्ण -नीला,लिंग-स्त्री, जाति-म्लेच्छ, अवस्था-वृद्ध,नेत्र-शनि जैसे, स्वरुप-मलिन, आकृति-दीर्घ, पद-पदहीन (सर्प),तत्व-वायु, गुण-तमोगुणी, प्रकृति-वात,स्वभाव-दारुण, धातु/सीसा, वस्त्र-कंबल,अधिदेवता-राक्षस, दिशा-नैऋत्य, रस-तिक्त, रत्न-गोमेद, वाहन-व्याध्र, प्रतिनिधि पशु-धोड़ा, ऊंट,तथा सर्प,अशुभ है इसका कोई वार नहीं है।
इसका पैरों पर अधिकार माना गया है तथा परिश्रम साहस,शारीरक शक्ति, दुर्भाग्य, चिंता, शत्रुता, पापकर्म, संकट,शोक,दुःख,दुर्घटना, विलासता, विध्वंसक प्रवृत्ति, अनुसंधान, सर्प विद्या, रत्न-गोमेद है, वाहन-व्याध्र है, शराब पीना, जासूसी, नाँव चलाना, दुर्गुण,शिकार तथा पितामह आदि के संबंध में विचार किया जाता है।
यह नीले रंग की वस्तुओं, सीसा, लोहा, गोमेद, सरसों, तिल कंबल, तलवार, घोड़ा, ऊं ट,सर्प,चमड़ा, मशीन, कारखाने, मुद्रण कार्य,फोटोग्राफी, चित्रकारी, वैधव्य तथा निंध् कर्म का अधिपति है।
यह जातक के जीवन पर प्रायः 42 से 48 वर्ष की आयु में अपना विशेष प्रभाव प्रकट करता है।