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किस देवी – देवता की उपासना करें ?
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हिन्दू धर्म बहुदेववादी है। शास्त्रों में ३३ करोड़ देवी- देवताओं का उल्लेख मिलता है।
ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति के लिए यह तय करना कठिन हो जाता है कि उसके लिए किस देवी देवता की उपासना करना ज्यादा फलदायी होगा। ऐसा कई बार होता है कि व्यक्ति द्वारा पूरी श्रद्धा और लगन से इष्ट की उपासना करता है पर भौतिक और आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं होती। ऐसा इष्ट देवता के अनुपयुक्त चयन कज कारण होता है।
आईये जानते है कि कैसे करें उपयुक्त इष्टदेव का चयन।
भारतीयज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में पंचम स्थान को बुद्धि का और नवम स्थान को धर्म उपासना का माना गया है। पंचम भाव से जहाँ बुद्धि और प्रकृति का पता चलता है, वहीं नवम भाव से अपने अभीष्ट देवी- देवताओं का ज्ञान होता है।
यहां पर पंचम भाव का स्वामी, पंचम भाव मे स्थित ग्रह, नवय भाव और नवम भाव में स्थित ग्रह इन चारों मे जो अधिक बलवान हो उसी को इष्ट मानकर उपासना करनी चाहिए।
उपासना प्रकृति :-
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१- यदि पंचम भाव मे शुभ ग्रह हो जैसे पूर्ण चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र और पंचमेश भी शुभ ग्रह हो तो व्यक्ति सात्विक भाव का उपासक माने वैष्णव होगा, अर्थात विष्णु या विष्णु के अवतारों का उपासक होगा, दार्शनिक होकर भगवान बुद्ध के मार्ग का अनुसरण कर सकता है।
२- पर यदि पंचम भाव में पापग्रह सूर्य, मंगल,शनि बैठे हो या ये पंचमेश हो तो व्यक्ति राजसिक,और तामसिक उपासक हो सकता है और वह परमात्मा शिव, हनुमानजी, गणेशजी, आदि का उपासक होगा।
३- पंचम भाव में राहु या केतु विद्यमान हो तो व्यक्ति भूत – प्रेत, जादू-टोना, यक्षिणी आदि निम्न कोटि के देवी देवताओं का उपासक होता है।
उपास्य देवी जी होंगी या देवता :-
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नवम भाव से विचार करते है,
१- यदि नवम भाव मे स्त्री लिंग वाले ग्रह हो जैसे शुक्र और चन्द्रमा तो व्यक्ति को गायत्री माता या दुर्गा मैय्या की आराधना करनी फलदायक होगी।
२- यदि नवम भाव मे पुरुष ग्रह हो तो जैसे सूर्य, मंगल, गुरु हो या नवमेश पुरुष संज्ञक हो तो देवता की पूजा करनी चाहिए।
सूर्य हो तो भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण
मंगल हो तो कार्तिकेय, हनुमानजी, गणेश जी, भैरव जी उपासना करनी चाहिए।
शनि हो तो परमात्मा शिव जी उपासना करे।
बुध हो तो त्रिपुर सुंदरी, गौरी माता,श्यामा माता ।
राहु केतु नवम मे स्थित हो तो काली, भद्रकाली कपालिनी ज्वालामुखी, नृसिंहावतार, वराह अवतार, परशुरामजी, भैरवनाथ, पशुपतिनाथ आदि की उपासना व्यक्ति को करनी चाहिए।
संक्षिप्त मे:-
सूर्य से शिव जी की उपासना
चन्द्रमा से पार्वती/ गौरी की उपासना
मंगल से हनुमानजी, और कार्तिकेय जी
बुध हो तो विष्णु जी की
गुरु से शिव जी निराकार उपासक
शुक्र से देवी की भक्ति करनी चाहिए लक्ष्मी जी
शनि से उभयलिंगी उपासना करनी चाहिए
राहु केतु हो तो व्यक्ति नास्तिक होता है, श्रद्धा हीन होने से उपासना सार्थक नहीं होती अपितु व्यक्ति तंत्र मंत्र के चक्कर में पड़ा रहता है।