February 11, 2019

ज्योतिष जानिये-भाग 40

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ज्योतिष और संतान योग
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कुपुत्र योग :- पंचम भाव मे केतु वाला जातक अपने पुत्र संतान से हमेशा झगड़ता रहेगा। पुत्र न हो तो पति-पत्नी पुत्र अभाव के कारण दुःखी रहते हैं। यदि पुत्र पैदा होकर मर जाता है तो इंसान ज्यादा दुःखी होता है पर नाना प्रकार के कष्ट उठाकर, लाड़ प्यार से पाला हुआ पुत्र बड़ा होकर अवज्ञाकारी,मूर्ख एवं कलहकारी हो जाता है तो यह मातापिता के लिए सबसे बड़ा दुःख है। मरे हुए पुत्र का दुःख तो व्यक्ति थोड़े समय में भूल जाता है या भूल सकता है पर नालायक पुत्र कदम कदम पर माता पिता को शूल की तरह पीड़ा देता है। पंचमेश यदि छठे भाव में पापग्रहों से युत हो तो पुत्र पिता का शत्रु होता है,ऐसे में पंचमेश की शांति का उपाय करें।
संतान हीन योग :-
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१-पंचमेश पाप पीड़ित होकर छठे, आठवें, बारहवें भाव मे हो और पंचम भाव मे राहु हो तो संतान नहीं होती।
२- पंचम मे राहु या केतु होने से कालसर्प योग का निर्माण होता है तो संतान नहीं होती।
३-पन्चमेश कमजोर हो और तीन केन्द्रों मे पापग्रह हो तो संतान नहीं होती।
४- लग्न मे मंगल,अष्टम मे शनि, एवं पंचम में सूर्य हो तो व्यक्ति का वंश आगे नहीं चलता।
५- चतुर्थ भाव में पापग्रह हो तथा चन्द्रमा से आठवें स्थान में भी पापग्रह हो तो व्यक्ति का वंश आगे नहीं चलता।
संतान बाधा और उपाय :-
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भारतीय दर्शन मे आत्मा की अमरता के साथ पूर्व जन्म एवं पुनर्जन्म को मानता है तथा व्यवहारिक रुप से यह विज्ञान ज्योतिष शास्त्र द्वारा पूर्ण रूप से मुखरित होता है।क्योंकि जन्म कुंडली का सूक्ष्म अध्ययन करने से स्पष्टतः पता चलता है कि पिछले अनेक जन्मों में क्या क्या पाप किये, जिसके कारण संतान नहीं है या होकर मर जाती है या घर में कुपुत्र उत्पन्न हो रहे हैं।
अतः जो जो ग्रह बाधा कारक हो ,उस उस ग्रह के उपाय करने से संतान सुख की सम्भावना बड़ जाती है।
संकल्प पूर्वक सेतु स्नान, भगवान विष्णु के व्रत,दान,श्राद्ध, नाग प्रतिष्ठा और शिव पूजा से संतान की प्राप्ति होती है। इसमें संदेह नहीं है।
१- यदि संतान बाधा कारक ग्रह सूर्य है, तो भगवान शंकर और गरुड़ के द्रोह के कारण या पितरों के शाप के कारण संतान सुख नहीं होता, ऐसे व्यक्तियों को सूर्य साधना के साथ सिद्धिप्रद देवी की स्थापना करनी चाहिए।
२- यदि संतान प्रतिबंधित ग्रह चन्द्रमा है तो माता,मौसी,सास,गुरु पत्नी या किसी अन्य सधवा स्त्री का चित्त दुखाने से संतान सुख नहीं है ऐसा समझें। चन्द्र ग्रह का जप,हवन,दान करते हुए सोमवार व्रत करें और साथ ही साथ शिव उपासना भी करें।
३- यदि संतान बाधक ग्रह मंगल है त ग्राम देवता, भगवान कार्तिकेय स्वामी,शत्रु या भाई- कुटुम्बियों के शाप के कारण जातक को संतान नहीं होता। मंगल ग्रह की शांति के साथ साथ अतिरूद्राभिषेक जरूर कराये।
४- यदि संतान अवरोधक ग्रह बुध है तो बिल्ली के मारने या प्राणियों के अण्डे नष्ट करने से,बालक बालिकाओं के शाप से, और भगवान विष्णु का अनादर करने से संतान नहीं होती। बुध ग्रह की शान्ति के साथ साथ महाविष्णु यज्ञ कर कास्यपात्र दूध में देना चाहिए।
५- यदि बृहस्पति बिगड़ने से संतान नहीं तो व्यक्ति ने पूर्व जन्म में फलदार वृक्षों को कटाया है। कुलदेवता, कुलगुरु या आदरणीय व्यक्ति का अपमान किया है।इसके लिए व्यक्ति को गुरु के वैदिक मंत्रों का १९००० जप करने चाहिए। पितरों की तिथि को,श्राद्ध यज्ञ करना चाहिए।
६- यदि शुक्र के बिगडऩे से संतान नहीं हो रही तो समझिए फल,पुष्पों युक्त वृक्षों को कटवाने से,गौ पाप से,किसी साधवी स्त्री का शाप से,गर्भपात से,या बालात्कार का दोष के कारण या यक्षिणी का शाप के कारण संतान नहीं हो रही ऐसा समझे। शुक्र ग्रह की हवनात्मक शान्ति और गौ सेवा करें।
७- शनि बिगडे से संतान नहीं हो रही है तो व्यक्ति ने पीपल के वृक्ष कटवाये, मरते वक्त किसी की आत्मा को दुःखाया,निर्धन गरीब की हाय,प्रेतात्मा के कारण संतान नहीं हो रही ऐसा समझे। शनि के तैंतीस हजार जप करना चाहिए। महामृत्युंजय जप व हवन संकल्प पूर्वक करें।
८- यदि राहु के कारण संतान नहीं तो सर्प शाप से , ऐसे में जातक को राहु के वेदोक्त मंत्रों के अठारह हजार जप करते हुए घर मे नागपाश यंत्र का नित्य पूजन करें, पराई कन्या का कन्यादान जरूर करें।
९- यदि केतु के कारण संतान नहीं हो रही हैं, तो ब्राह्मण का शाप या अपमान के कारण ऐसा हुआ है समझें। अतः ब्राह्मणो को सम्मान देकर प्रीति पूर्वक ब्रह्मभोज कराये ,वस्त्र, उपवस्त्र दक्षिणा देने से केतु दोष नष्ट हो जाता है।

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