January 29, 2019

ज्योतिष जानिये-भाग29

 925 total views,  1 views today

गुरु ग्रह :-
♀♀♀♀♀♀♀
पुराणों में बृहस्पति को अंगिरा ऋषि का पुत्र कहा गया है। देवताओं के गुरु पद पर अभिसिक्त होने के कारण इन्हें “गुरु” भी कहा जाता है।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार यह आकर तथा भार में अन्य सभी ग्रहों से अधिक है। कुछ विद्वान इसका व्यास पृथ्वी से ११ गुना अधिक मानते हैं।
यह अपनी धुरी पर प्रायः १० घंटे में घूमता है।इसकी गति ८ मील प्रति सेकंड है।यह लगभग १२ वर्ष में सूर्य की एक प्रदक्षिणा पूरी करता है।स्थूल रूप से एक राशि मे एक वर्ष तक रहता है। इस ग्रह पर घनी वायु के बादल.निरंतर घिरे रहते हैं।
विशेष― गुरु को कालपुरुष का ज्ञान माना गया है, अतः यह ज्ञान का प्रतीक है।इसका वर्ण-पीला, जाति- ब्राह्मण, लिंग- पुरुष,अवस्था-वृद्ध,तत्व-आकाश, गुण-सतोगुण, प्रकृति-सम, स्वभाव-मृदु, रस-मीठा, ऋतु- हेमंत, दिशा- उत्तर अधिदेवता-इंद्र, रत्न- पुखराज, वेदाभ्यास- ऋग्वेद, विद्याध्ययन- वेदांत और व्याकरण, वाहन – हाथी, प्रतिनिधि पशु- अश्व,वार- गुरुवार।
यह स्वर्ण ,कांस्य, पीले रंग के फूल,वस्त्र तथा फल आदि एवं हल्दी, धनिया, प्याज, ऊन,मांस, चना,गेहूं, जौ,तथा मोम का प्रतिनिधि हैं।जीव हृदय, चर्बी तथा कफ पर इसका अधिक क्षेत्र है।
आध्यात्मिक, उदारता, राजनीतिज्ञता,मन्त्रित्व,पारलौकिक सुख,ज्ञान बुद्धि, विवेक, धर्म, व्यास,शान्त स्वभाव, पुरोहित्व यश,कीर्ति, सम्मान, प्रतिष्ठा स्वास्थ्य, पवित्र व्यवहारतथा कल्याण आदि के अतिरिक्त यह धन, सम्मान तथा बड़े भाई का भी प्रतिनिधि करता है।यह जातक के जीवन पर प्रायः१६,२२ एवं ४० वर्ष में अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *