March 21, 2019

दाम्पत्य जीवन के सुखों का नाश जब शनि ७वें भाव में

 779 total views,  3 views today

कुण्डली मे – जब शनि पत्नी के घर(सप्तम भाव)मे बैठें
**************************************
आज हम रहस्यमय ग्रह शनि की पत्नी भाव मे उपस्थित पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
ज्योतिषी जीवनाथ के विचानुसारः―
‘ यदा दारागारं गतवति दिनाधीशतनये,
गदैरार्ता दाराः बलमपि कुतो वित्त मधिकम्।
अनुत्साहः कृत्ये भवति कृशतातीव भविनां,
गदानामाधिक्यं सपदि चपला बुद्धिरभितः।।
अर्थात सप्तम भाव मे यदि शनि बैठा हो तो व्यक्ति की पत्नी के स्वास्थ्य की हानि होती है। तथा व्यक्ति स्वयं निर्धन,शक्तिहीन,बिमार और असंतुलित दिमाग का होता है। पत्नी की अत्यधिक बिमारी दाम्पत्य जीवन के सुख को पूरी तरह नष्ट कर देती है।


मानसागरी ग्रंथ के अनुसार :-
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
विश्रामभूतां विनिहंति जायां सूर्यात्मजः सप्तमगश्य रोगान्।
धत्ते पुनर्दम्भधरांगहीनां मित्रस्य वंशे रिपुता सुहृद्भिः।।
इसके अनुसार सप्तम भाव में शनि हो तो अतिशय गुणवती भार्या का नाश होता है। व्यक्ति स्वयं रोगी,अहंकारी, अंगो से हीन,अपने है मित्रों से शत्रुता रखने वाला होता है।
7वें घर मे शनि वैवाहिक जीवन में मतभेद और संघर्ष पैदा करता है। व्यक्ति की पहली पत्नी की अकाल मृत्यु हो जाती है, यहां तक की उसकी दूसरी शादी भी उनकी इच्छा के अनुसार नहीं है, जीवन शान्ति से रहित हो जाता है।उसकी दूसरी पत्नी घमंडी और थोड़ी शरीरिक रुप से विकलांग होगी।
आमयेनबलहीनतांगतोहीनवृत्तिजनचित्तसस्थितिः
कामिनी भलधान्यदुःखितः कामिनीभवनगेशनैश्चरे
– एक अन्य ज्योतिषाचार्य महेश जी अनुसार – जिस व्यक्ति की कुण्डली मे सप्तम भाव मे शनि बैठा हो तो व्यक्ति कमजोर पतले शरीर वाला, निकम्मा, बैचेन तथा घर,पत्नी,और भोजन सुख सुविधाओं से वंचित होगा।
– नरेन भट्ट के अनुसार
‘ सुदारो न मित्रं चिरं चारु वित्तं शनौ द्यूनगे दम्पती रोगयुक्तौ।
अनुत्साहसन्तप्तकृद् हीनचेताः कुतो वीर्यवान् विह्वलो लोलुपः स्यात्।।’
ऐसा कुण्डली धारक एक अच्छी पत्नी, कुलीन और साफ दिल के दोस्तों और धन आराम और जीवन मे जल्दी आराम से वंचित होगा। पति और पत्नी बीमारियों से दोनों ग्रस्त रहेंगे। निरंतर समस्याओं और अनैतिक कार्य जीवन की रफ्तार को सुस्त कर देंगे, फलस्वरूप व्यक्ति आशंकित और डरपोक हो जाता है।लालची हो जाता है, नतीजतन वह सामाजिक स्तर पर आवश्यक छबि को बनाए नहीं रख पाता।
– ऋषि पाराशर जी के अनुसार
‘ सप्तमे स्त्रीविरोधनम्। हीना च पुष्पिणी व्याधि दौर्बलिनस्तुथा।।’
शनि सप्तम मे व्यक्ति को पत्नी द्वारा अपमानित कराता है। वह कम बिमार और मासिक धर्म वाली महिलाओं के साथ संबंध बनाता है।
उपरोक्त कथन को वराहमिहिर जीऔर वैद्यनाथ जी भी स्वीकार करते हैं।
– वशिष्ठ जी के अनुसार
‘ रविजः किल सप्तमस्थः जायां कुकर्मनिरतां तनुसन्ततिं च । ‘
एक चरित्रहीन भ्रष्ट पत्नी 7घर मे शनि के ही दुष्परिणाम हैं।
– श्री गोपाल रत्नाकर के अनुसार
व्यवहारिक रूप से सभी समस्याओं के लिए सप्तम भाव का शनि जिम्मेदार है। वे कहते है कि व्यक्ति निश्चित बिमार और चिंतित रहता है ,उसकी पहली पत्नी की मृत्यु हो जाती है । दूसरी शादी से प्राप्त पत्नी दुःखी स्वभाव वाली, दुष्ट मित्र रखने वाली, अनैतिक आचरण में लिप्त होगी। व्यक्ति सरकारी विवादों मे पैसा खो देगा।
– कल्याण वर्मा की एक सूत्र के अनुसार
सततमनारोग्यतनुं मृतदारं धनविवर्जितं जनयेत्।
द्यूने^र्कजः कुवेषं पापं बहुनीचकर्माणम्।।
रोग व्यक्ति को जीवन भर परेशान करते हैं। उपस्थित प्रकृति और सामाजिक स्थिति के कोण से वह बदसूरत हो और नीचे देखा गया है। साथ ही साथ वह बहुत ही गंदे कपड़ें पहनता है।जीवन साथी की मृत्यु हो जायेगी।
– वृहद यवन जातक के अनुसार
‘ कलत्रस्थे मित्रपुत्रे सकलत्रो रुजान्वितः।
बहुशत्रुर्विवर्णश्च कृशश्च मलिनो भवेत्।।
व्यक्ति अपनी पत्नी के रोगग्रस्त होने के साथ साथ दुश्मनों से परेशान होगा। बहुत ही गंदे कपड़े पहनेगा । अनैतिक कार्यों को करने वाला होता है।
– अंत मे भृगु ऋषि के अनुसार
‘ शरीर दोषकरः कृशकलत्रः वेश्यासम्भोगवान् अति दुःखी उच्च स्वक्षेत्रगते।—————
व्यक्ति बिमार ,कमजोर और दोषपूर्ण होगा। गलत संग करेगा और समाज उसे बुरी नजर से घृणा से देखेगा।
अतः यदि व्यक्ति की कुण्डली मे सप्तम भाव मे शनि हो तो दाम्पत्य जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है, कभी शरीरिक कमी से ,तो कभी चरित्र के कारण। जिन्दगी मे अपयश मिलेगा, शरीर में रोग,और कभी कभी पहला जीवन जीवनसाथी मर जायेगा।


विशेष– यदि मेष, मिथुन, कर्क राशि में शनि सप्तम भाव में बैठा हो तो थोड़ी राहत रहती है। चर राशियों मे ज्यादा खराब परिणाम नहीं होते।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *