December 30, 2018

प्रकृति और पुरुष….

 1,559 total views,  5 views today

प्रकृति और पुरुष के अन्तर्गत आज प्रकृति को जानते है, माया, योनि और प्रकृति ये तीनों प्रसव कारी शक्तियां है सृजन कारी शक्तियाँ है । भगवान श्रीकृष्ण कहते है मैं अपनी प्रकृति पर आरूढ़ होकर माया से प्रकट होता हूं । या “मम माया रचित संसारा ” । यहा माया और प्रकृति का अंतर समझना होगा, तो माया का गुणवती होना प्रकृति है जैसे शादी के पहले का नाम गोदावरी/ यमुना एवं शादी के बाद का नाम पार्वती / रमा । ” गुणाः प्रकृति सम्भवः ” एवं” प्रकृतिजै त्रिभि गुणैः ” । प्र – सत्व , कृ- रजो, ति- तमो गुण । इसलिए प्रकृति को त्रिगुणात्मक, त्रिशक्त्यात्मक माया शक्ति कहा है, यह वही प्रकृति है जिसे ईश्वर की अर्धांगिनी कहा गया है, प्रभु जैसा नाम रुप धारण की कराने की ईच्छा प्रकट करते है वैसा ही नाम रुप धारण करती है। पुरुष ने अव्यक्त और त्रिगुणात्मक माया को स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया, तब लीलापरायण प्रकृति अपने सत्वादि गुणो द्वारा उन्हीं के अनुरूप प्रजा की सृष्टि करने लगी,यह देख पुरुष ज्ञान को आच्छादित करने वाली उसकी माया से मोहित हो गया और अपने स्वरूप को भूल गया ,नहीं तो वह पूर्ण ब्रह्म है। {जीवो ब्रह्मव नापरः } jiva is brahm and none other . “चाह चूहड़ी चाह चमारी, चाह नीचत की नीच। तू तो पूर्ण ब्रह्म था, जो चाह न होती बीच ।।” प्रकृति के कर्मो का वह कर्ता स्वयं को मानने लगा इसलिए उसे बन्धन की प्राप्ति हुयी।प्रकृति उपादान कारण है, पुरुष निमित्त कारण।


You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *