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“बहुदेववाद”
एक ही परिवार के दस सदस्य हैं तो सबके देवता अलग-अलग हैं। कोई हनुमानजी का भक्त है तो कोई शिव का, कोई देवी जी का , कोई अन्य देंवता का। अपने-अपने देवी- देवताओं के लिए लोग एक- दूसरे से झगड़ा भी करते देखें जाते हैं। किसी को यह मालूम नहीं है कि शाश्वत कौन है? किसकी उपासना से शाश्वत धाम की प्राप्ति होगी? अनेक देवी- देवता हमारे मन में इस प्रकार समा गये हैं कि अंत तक हम किसी पर विश्वास ही नहीं टिका पाते ।मृत्यु के समय जब लड़के आस -पास खड़े होकर कहतें हैं कि दादा अब चिंता त्याग कर भगवान का स्मरण कीजिए, तो दादा एक झटके से कह गुजरते हैं- हे हनुमानजी, हे दुर्गा जी, हे शीतला माता, हे विन्ध्यवासिनी देवी, हे मैहरवाली माता , हे हरसू ब्रह्म बाबा , हे शंकर जी अर्थात औसतन २५-३० नामों का एक साथ स्मरण करने लगते हैं। इस तरह भ्रांति अन्त तक बनी रहतीहै, तो भला” एक मंदिर दस देवता क्यों कर बसें बजार ?” ह्रदय एक मन्दिर है जो एक परमात्मा को अपने अन्दर स्थान दे सकता है, उसमे अनेक लोगों को स्थान नहीं दिया जा सकता।तब ” दुविधा में दोऊ गये, माया मिली न राम।” अतः ह्रदय में किसी एक को बैठाना ही उचित होगा ।