January 8, 2019

भगवान दीनदयाल है, दुखी दयाल नहीं ।

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दीन होकर उनकी शरण मे आने से उनकी दयालुता काम करेगी। दीन वह है जो सर्वथा निराधार हो गया हो, संसार में कहीं भी जिसको कोई भी आधार न रह गया हो, संसार सर्वथा जिसको नीरस लगने लगा हो। किसी भी वस्तु मे जिसका मन न लगता हो, शब्द, स्पर्श, रुप, रस, गंध आदि विषयों से जो सर्वथा उपराम हो गया हो और जिसकी वृत्ति के लिये कोई भी सांसारिक आधार न रह गया हो, ऐसा निराधार जीव ही वास्तव मे दीन कहा जा सकता है।
द्रौपदी चीर हरण के समय दीन हो गई थी। कोई भी उसका रक्षक नहीं रह गया था। उस निस्सहाय दीनावस्था मे उसने भगवान को पुकारा, दीनदयाल भगवान ने उस पर दया की।
ग्राह ने जब गज को पकड़ा उस समय गज सर्वथा निराधार हो गया, उसे कहीं कोई सहायक नहीं दिखा।निराश होकर सर्वथा दीन होकर उसने भगवान को पुकारा उसी समय दीनदयालु भगवान ने अपनी दयालुता का परिचय दिया।
आप हमारी की जब तक संसार की आशा नहीं छूटेगी ,तब तक दीनावस्था नहीं आवेगी और दीन हुए बिना दीनदयाल भगवान की दयालुता के पात्र नहीं बन सकते। दीनावस्था मे प्राणी को केवल एक मात्र परमात्मा का ही आधार रह जाता है।
दीन परमात्मा के लिए अनन्य होता है, और अनन्य भक्तों के लिए भगवान को भी अनन्य होना पड़ता है क्योंकि उनकी प्रतिज्ञा है।

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