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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्म कुण्डली का अध्ययन
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भगवान श्री राम विष्णु के अवतार हैं। आज भी देश विदेश में बसे हुए करोड़ों हिन्दू इनकी पूजा करते हैं। हिन्दुओं के अलावा भी हिन्द चीन, हिन्देशिया आदि देशों में राम के चरित्र पर बने महाकाव्य रामायण का पाठ होता है और राम लीला का मंचन होता है।
परन्तु ऐसे भगवान श्रीराम को भी वन-वन भटकना पड़ा,उनकी पत्नी जगत्माता सीता का अपहरण हुआ। मेघनाथ के साथ युद्ध के समय राम और लक्ष्मण दोनों को नागपाश मे बन्धकर मृत्यु के पास तक जाना पड़ा। भगवान श्रीराम की कुण्डली में यह सभी परिलक्षित होता है। ग्रहों की गति से वे भी नहीं बच पाये।
रामायण के बालकाण्ड के 18 वें अध्याय के श्लोक 8 और 9 निम्नलिखित प्रकार से हैं :-
ततो यज्ञे समाप्ते तु त्रटतूनाम षट समत्ययुः।
ततश्च द्वादशे मासे चेत्रे नावमिके तिथि।।8।।
नक्षत्रे दिति दैव्त्ये स्वोच्चा संस्थेसु पंचेसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्यताविन्दुना सह ।।9।।
इन श्लोकों में महर्षि वाल्मीकि ने राम के जन्मचक्र का वर्णन किया है। उनके अनुसार यज्ञ के बाद छः ऋतु अर्थात एक वर्ष व्यतीत होने पर चैत्र मास नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र में जब चन्द्रमा था और पाँच ग्रह उच्च के थे और गुरु और चन्द्रमा कर्क लग्न में विराजमान थे उस समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म हुआ।
भगवान के चारों केन्द्रों में उच्च के ग्रह हैं, कुल ५ ग्रह उच्च के हैं और चन्द्रमा, राहु और केतु स्वक्षेत्री है। दक्षिण भारतीय विद्वानों के अनुसार राहू धनु में और केतु मिथुन राशि में है।
परन्तु फिर भी भगवान श्रीराम को उच्च राशि के शनि और मंगल के दोष के कारण पत्नी का वियोग सहना पड़ा। शनि और मंगल की दशम स्थान पर दृष्टि के कारण पिता की मृत्यु का कारण बनना पड़ा, और इसी शनि की चतुर्थ भाव में स्थिति के कारण मताओं का वैधव्य देखना पड़ा।
उच्च के ग्रह से हंस योग, शशि योग,रुचक योग और गजकेशरी योग है। पुनर्वसु के अन्तिम चरण में होने से चन्द्रमा स्वक्षेत्री होकर वर्गोत्तम है।अतः भगवान श्री राम के सामने जो भी कठिनाइयाँ आईं उनका उन्होंने सफलतापूर्वक सामना किया। पाँच ग्रह उच्च के होने से भगवान अवतारी पुरुष हुए। चन्द्रमा लग्न मे बली गुरू से प्रभावित होने से भगवान ने मर्यादाओं का पालन किया।
तृतीय भाव में राहु के कारण भगवान अत्यंत प्रतापी हुए। पंचमेश मंगल पंचम से तीसरे स्थान पर है अतः उनके पुत्रभी पराक्रमी हुए।
भगवान श्री राम का विवाह 18 वर्ष की आयु मे हुआ था।उस समय सप्तमेश की दशा थी और गोचर का गुरु सप्तम मे था, और गोचर के वृषभ के शनि को देख रहा था।
भगवान जब 27 वर्ष के थे जब वनवास हुआ था और उनके वियोग में उनके पिता महाराजा दशरथ का स्वर्ग वास हुआ।
बुध की दशा में ही सीता हरण हुआ।व्ययेश की दशा में शैय्या सुख का नाश होता है।और कष्ट कारक यात्रा होती है।
फिर नवम स्थान म़े स्थित स्वक्षेत्री केतु की दशा मे लंका विजय करके अयोध्या के सम्राट बने।
लग्न में गुरू-चन्द्र बली होने से भगवान ने अमित आयु का उपयोग किया।