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घर बनाते समय शौच स्थान कहां और किस दिशा मे दिया जाए ?
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शौच स्थान मे तामसिक उर्जाओं की प्रधानता रहती है। दिशाओं में नैर्ऋत्व कोण ( दक्षिण -पश्चिम ) को तामसिक उर्जाओं के लिए निर्धारित किया गया है। नैर्ऋत्व के पश्चिम मे पड़ने वाली सौर किरणें विष तुल्य होती हैं, जो हानिकारक कीटाणुओं को मार डालती है। अतः शौच स्थान नैर्ऋत्व मे थोड़ा पश्चिम में हो तो सर्वथा उपयुक्त है।
कुण्डली मे यह दिशा अष्टम भाव और वृश्चिक राशि के समकक्ष है। वृश्चिक राशि एक स्थिर जलीय राशि ह। समय बीतने के साथ-साथ ठहरा जल जहरीला हो जाता है। शौचालय वह जगह है जहां हम जहरीले पदार्थ छोड़ते हैं, अष्टम भाव मृत्यु का भाव भी है, अतः नैर्ऋत्व का पश्चिमी भाग मे जहां आग उगलती सूर्य की अवरक्त किरणें घातक कीटाणुओं को मारकर प्राकृतिक कीटाणु नाशक का कार्य करती है।
१-शौचालय का निर्माण पूर्व दिशा में करने पर गंभीर दोष उत्पन्न होंगे, पूरा घर तबाह हो सकता है।
२- कमोड को दक्षिण, पश्चिम, या नैर्ऋत्व मे बैठाना चाहिए।
३- नल पूर्व, उत्तर दिशा में लगाए।
४- वाश बेसिन उत्तर या पूर्व की दीवार मे लगाए।
५- शौचालय में कभी नंगे पांव न जाए।
६- शौचालय का रंग नील मिश्रित सफेद, पीला रंग ठीक रहता है।
७- शौचालय में एग्जास्ट फैन वायव्य दिशा( उत्तर-पश्चिम ) / पूर्व दिशा में लगाऐं।
८- शौचालय में समुद्र नमक सूखा रखना ठीक रहता है, यदि गीला हो जाय तो बदल दे।
इस प्रकार प्रसन्नता और सफलता का राज शौचालय की सुव्यवस्था मे छिपा है।