
विश्व मे वस्तु सत्ता का घनत्व सापेक्ष रुप मे बदलता रहता है। जहां जहां घनत्व बढ़ता है, वहां वहां वक्रता बढ़ जाती है, एवं जहां जहां घनत्व घटना है वहां वक्रता घट जाती है प्रसार होता है। वक्रता विश्व मे निरन्तर घटती बढ़ती है इसी कारण वक्रता की तरंग माला भी निरंतर डोलती है। वक्रता का अर्थ आप थोड़ा गुरुत्वाकर्षण से मिलकर समझे। वक्रता मे परिवर्तन होता रहना बड़ी भीषण गति है। गति शीलता के ओतप्रोत वस्तु सत्ता के घनत्व के घटते बढते रहने के कारण विमान, रेलगाड़ियां ,जनसंख्या की भीड़ और भी बराबर छोटे प्राणियों के दोड़ते रहने भी एक कारण है। हर द्रव्यमान परिवेशी व्योम को वक्रित करता है।
अतिशक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों मे यह प्रभाव काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। 01 वर्गमील स्थान में जो भी प्राकृतिक हलचल है उसका मूल कारण 25 ग्राम विद्युत चुम्बकीय तत्व है। ( यहां 4 फण्डामेंटल फोर्स का संबंध वक्रता से है और वक्रता का कारण घनत्व है ) । यहां एक उदाहरण से आप को समझने में आसानी होगी, जैसे ब्लड मे सुगर घटने बढ़ने से उसके ऊतको का घनत्व बार बार बदलता रहता है नतीजतन चश्मे का नम्बर बार बार बदलता है।
ज्यों ज्यों सूक्ष्म संसार में प्रवेश करते जाते हैं त्यों त्यों गति तीव्रता भी बढ़ती जाती है, इसका उल्टा भी समझ ले ज्यों ज्यों गति की तीव्रता बढ़ेगी त्यों त्यों सूक्ष्म जगत मे प्रवेश अर्थात अव्यक्त व्यक्त होने लग जायेगा। गुरुदेव भगवान के श्रीमुख से सुना जब जब प्रकृति में वैषम्य होगा तो प्राकृतिक आपदा आयेंगी। प्रकृति सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण का साम्य है। विज्ञान की भाषा में यह संसार इलेक्ट्रान, प्रोट्रान और न्यट्रानों से बना है। यदि रजोगुण और तमोगुण बढ़ेगा तो पंच तत्वों मे असंतुलन पैदा होगा और महामारियों और आपदाओं का आगमन होगा। अनिष्ट शक्तियां मूलतः रज-तम प्रधान होती हैं।
सतोगुण-प्रोट्रान, रजोगुण- न्यूट्रान, तमोगुण-इलेक्ट्रान समझकर यह आर्टिकल को आसानी से समझा जा सकता है। स्थिति का निरंतर जाड्य रूप में बना रहना तमोगुण है, और यही अव्यक्त शक्ति है। गति रजोगुण है, गति के आविर्भाव से अव्यक्त से व्यक्त सृष्टि होती है। सतोगुण गति का सामञ्जस्य है जो देश की वक्रता और काल की मर्यादा मे प्रकट है। वक्रता का सम्बंध घनत्व से है। सतोगुण घटने से (पवित्रता, आनंद ,संतोष ), गति का समाञ्जस्य नहीं होने से रज एवं तम प्राकृतिक आपदा एवं महामारी लाते हैं। इस पंच गतिशीलता पृथ्वी पर सभी दौड़ते या रेंगते रहते हैं । जीवन मात्र गति है, गति रुकना जीवन अंत है। हृदय और नाड़ी की गति सभी प्राणियों मे गति जिस पिण्ड मे रुकी वह असमर्थ/अशक्त/मुर्दा है।
जीवन और गति एक ही चीज है। प्राण भी गति/वेग का द्योतक है।जिन्हें हम प्राणी कहते है उसमें “गति” न हो तो प्राणी होना अर्थ शून्य है।चर की गति तो है ही इसके अलावा प्रत्येक स्थूल पिण्ड जिस पदार्थ से बना उसके कणों की गति है। गति का समंजस्य सतोगुण है। या प्रोट्रान है यदि कमजोर हो तो वस्तु सत्ता समाप्त की ओर होगी। सरल भाषा असंतोष, आनंद विहीन होकर लोगों का बड़े या रोजगार वाले शहरों जाकर घनत्व मे वृद्धि कर प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे। सतोगुण का आचरण /आभाव है, भागमभाग( संतोष और शांति न होने से) घनत्व को प्रभावित कर रहे हैं। आज वहां ज्यादा महामारी है जहां ज्यादा घनत्व (विद्युत चुम्बकीय तत्व) है। चाहे वायुयान, या रेलगाड़ियों या प्राणियों की वजह से हो।