March 19, 2019

“माणिक्य रत्न”

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माणिक्य रत्न
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माणिक्य या पद्मराग सूर्य का मणि होने से रविरत्न,अर्कमणि,आदि भी कहलाता है। संस्कृत में इसे कुरुविन्दु,लक्ष्मीपुष्प,शोणितरत्न तथा लोहित आदि नामों से पुकारते हैं। बोलचाल की भाषा में इसे मानिक कहते हैं। अरबी में लालबदख्शां तथा फारसी में याकूत अहमर कहते हैं। लैटिन भाषा में माणिक्य को रुबीनस तथा आंग्ल भाषा में रुबी कहा जाता है। पालि तथा प्राकृत भाषा में माणिक्य कहा जाता है।

प्राप्ति स्थान :-
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भारत मे इसकी खाने कश्मीर,मध्यप्रदेश, कर्नाटक,बिहार तथा आसाम मे हैं। इसके अतिरिक्त वर्मा,श्रीलंका, थाईलैंड, अफगानिस्तान तथा हिन्दचीन में भी पाया जाता है।

रसायनिक संगठन :-
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यह रत्न स्फट्यातु (Aluminium), अयस् ( Ferrum ) तथा वर्णात ( Chromium) इन तीन तत्वों का जारेम (Oxide) है।

शुद्ध माणिक्य की पहचान :-
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1-जब शुद्ध माणिक्य को हिमखंड के अंदर दबाकर रखते हैं, तो ठंडा होने के कारण जोरदार आवाज होती है।
2- सूर्य की किरणों में रखने से असली माणिक्य लाल रंग की आभा बिखेरता है।
3- पाषाण पर घिसने से माणिक्य का भार कम नहीं होता है।
4- माणिक्य को यदि सौ गुने दूध मे डाला जाय ,तो उसका रंग लाल दिखाई देता है।

विशेष
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1- गुलाबी रंग का माणिक्य ब्राह्मण वर्ण का माना जाता है इसे बुद्धिजीवीयों को धारण करना चाहिए।
2- लाल कमल के सदृश रंग का माणिक्य क्षत्रियों, सैनिकों, आदि के लिए श्रेष्ठ रहता है।यह राज नेताओं के लिए भी शुभ होता है।
3- लाल अनार के समान रंग वाला माणिक्य वैश्य वर्ण का माना जाता है।यह व्यवसाय, वाणिज्य एवं व्यापार करने वालों को शुभ होता है।
4- मलिन वर्ण माणिक्य शूद्र वर्ण माना जाता है।
5- नीली आभा माणिक्य सूर्य औंर शनि युति मे धारण करना चाहिए।

माणिक्य के औषधीय गुण
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” माणिक्यं दीपनं वृष्यंकफवातक्षयार्तिनुत्। भूतवेताल पापघ्नं कर्मज व्याधि विनाशनं ।।”

माणिक्य धारण करने की विधि :-
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जिस दिन पंचांग में रविवार के दिन मघा नक्षत्र हो,उस दिन सूर्योदय से एक घंटे तक सूर्य की ही होरा रहेंगी। ऐसे समय स्वर्ण मुद्रिका में जटित करवा लें। माणिक्य ३-६ रत्ती भार का होना चाहिये। इसे अनामिका अंगुली मे धारण करें, माणिक्य का स्पर्श अंगुली की त्वचा से होता रहे।
” ऊँ घृणि सूर्याय नमः ” की मंत्र से १०८ बार अभिमंत्रित कर ले।

अंत मे माणिक्य के प्रयोग की ज्योतिषीय स्थितियाँ:-
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१- जन्म कुण्डली मे जब सूर्य अष्टम भाव में स्थित हो तथा मंगल के साथ हो।
२- जन्म पत्रिका में शनि की दृष्टि मंगल पर हो तथा उस मंगल की दृष्टि सूर्य पर हो,सूर्य की महादशा हो तो दुर्घटना तथा अस्थिभग्न का भय रहता है।
३- कर्कराशि के मंगल की तुलाराशि के सूर्य पर दृष्टि हो, वह सूर्य 6,8,12 भावों में स्थित हो।
४- सूर्य गुलिक की युति दुस्थानों मे हों।
५- गोचर का सूर्य अथवा जन्म कुण्डली मे शत्रुराशियों वृष,तुला,मकर,कुंभ में हो।
६- गोचर मे नीच का सूर्य त्रक भावों मे हों।
७- सूर्य षष्ठेश, अष्टमेश, तथा व्ययेश के साथ स्थित हो अथवा उनसे दृष्ट हो।

सूर्योत्पन्न व्याधियां :-
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यकृत विकार, पाण्डु, फिरंग,पूयमेह,फक्क रोग,सूखा रोग,शिरो रोग,अम्ल पित्त,पेप्टिक अल्सर,गैस्ट्रिक, अल्सर,विसूचिका, शिरोव्रण, विषविकार, दाह,पित्त,ज्वर,कामला आदि रोग उत्पन्न करता है। कारागार में जाने के योग भी बना देता है। व्यक्ति किसी घोटाले मे फँस सकता है। राजकोप का शिकार हो सतका है।

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