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माया दर्शन-भाग २(दुर्वासाजी को माया के दर्शन)
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एक समय की बात है एक समय पर श्रीकृष्ण के दर्शन को दुर्वासा मुनि ब्रज मे आये, उन्होंने कालिंदी के निकट कति पवित्र रमणीय रेती मे महावन के पास दूर से ही कृष्ण जी का दर्शन किया। श्रीकृष्ण बालकों के साथ रेती मेलोट रहे थे, यह देख दुर्वासा ऋषि आश्चर्य मे र्रड़ गये, दुर्वासा बोले यह कैसा ईश्वर है, जो बालकों के साथ धूल मे लोटता है, शायद त्रह कृष्ण नंद का ही पुत्र है, ये परात्पर ब्रह्म नहीं है।
तब श्रीकृष्ण अपने आप ही खेलते खेलते उनकी गोदी मे आ गिरे, फिर मीठी बोली बोलते दुर्वासा ऋषि के सम्मुख खड़ि हो गये तब हंसते श्रीकृष्ण के मुख मे श्वास से दुर्वासा अंदर पेट मे पहुंचे। वहां महालोक देखा, वहां महावन है निर्जन है, उस वन मे विचार किया कि अरे मै कहां आ गया ऐसा कहते ही दुर्वासा ऋषि को अजगर नेग्रास लिया, तब उन्होंने अजगर के पेट मे एक और ब्रह्माण्ड देखा। पाताल से सत्यलोक तक सातों द्वीप घूमते घूमते श्वेत पर्वत पर आकर खड़े हुए वहीं प्रभु का स्मरण करते करते सौ करोड़ वर्ष तय किये और जब विश्व का भंयकर नैमित्तिक प्रलय आया, तब भूमि को डुबोते चारों ओर से समुद्र आये उनमें बहते दुर्वासा ऋषि को अंत नहीं मिला तथा१००० युग बीत जाने पर बेहोश हो गए, तब दुर्वासा ऋषि ने एक और ब्रह्माण्ड देखा।उसमेँ विचरते एक छेद मे चले गये।वहां एक दिव्य सृष्टि देखी तथा ब्रह्मा की आयु होगी। फिर अण्ड से बाहर निकले वहां जल मे करोडों ब्रह्मांड देखे,फिर विरजा नदी देखी,गोलोक धाम देखा, उसके भीतर गये, उसमे वृंदावन, गोवर्धन तथा यमुना को देखा। तथा देखकर बड़े प्रसनि हुए। फिर कुंजवन गये वहां गोप,गोपियां, करौड़ौ गाय देखीं,साथ ही साथ असंख्य करोड़ों सूर्य के प्रकाश मंडल मे लाखदल कमल पर राधा पति को देखा। फिर कृष्ण को हँसी आयी तो उनके मुँह मे चले गए, फिर उन्हें खांसी आयी तो बाहर आ गिरे। वहां बालरूप नंदनंदन को देखा। वहां कालिंदी के किनारे पर पवित्र रमणीक रेती मे बालकों के साथ महावन मे विचर रहे कृष्ण को देखकर दण्डवत करके दुर्वासा ऋषि श्रीकृष्ण को ही परात्पर परमेश्वर जानकर प्रणाम कर स्तुति करने लगें।