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माया दर्शन-भाग 5
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गर्गसंहिता मे ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के गोलोक जाने पर भगवान श्रीकृष्ण की पार्षदा शतचन्द्रनना से हुआ वृतान्त बड़ा महत्वपूर्ण है। एक बार जब त्रिदेव गोलोकधाम पहुंचे और द्वार मे प्रवेश करने लगे तो श्यामसुंदर शरीर वाले, कामदेव के समान श्रीकृष्ण के सेवकों ने उनकों रोका। तब देवता बोले कि हम सब लोकपाल हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्रादिक श्रीकृष्ण के दर्शन को यहां आये हैं, ऐसा अभिप्राय को सुनकर गोलोक नाथ के द्वारपाल सखींजनो ने श्रीकृष्ण से भीतर जाकर निवेदन किया। तब एक शतचन्द्रनना नाम की गोपी निकली,पीताम्बर पहिने हुये, बेंत जिसके हाथ में है, वह देवताओं से उनका अभिप्राय पूछने लगी।आप सब यहां आये हुये किस ब्रह्माण्ड के स्वामी देवता हो, सो कहो, तब मैं भगवान से जाकर प्रार्थना करूंगी। तब सभी देवता बोले-कहो ! बड़े आश्चर्य की बात है, कि और भी कोई ब्रह्मांड है, हमने तो कहीं नहीं देखें हैं, हे कल्याणि ! हम तो एक ही ब्रह्मांड को जानते हैं, हे शुभे ! हम तो दूसरे को नहीं जानते हैं। तब चन्द्रानना बोली- यहाँ करोडों ब्रह्मांडों के समूह लुढकते हैं, जैसे तुम एक ब्रह्मांड मे रहते हो, वैसे ही अपने-अपने ब्रह्मांडों मे सब पृथक पृथक रहते हैं। अरे तुम अपने ब्रह्माण्ड का नाम भी नहीं जानते हो, यहां कभी भी नहीं आये हो, तुम जड बुद्धि से ही प्रसन्न रहते हो, क्योंकि घर के बाहर कभी नहीं निकले हो। एक ही ब्रह्मांड को जानते हो, जहां कि उत्पन्न हुए हो। जैसे फल के भीतर मशक (भुनगा) उस गूलर को ही ब्रह्माण्ड जानता है। इस तरह जब देवताओं की हँसी की, तब वे सब चुप होकर खड़े हो गये। तब विष्णु बोले- जिस अण्ड मे पृश्नि गर्भ भगवान का सनातन अवतार हुआ था और वामन जी के नख से अण्ड फूट गया है उस अण्ड में हम रहते हैं। तब चन्द्रानना भीतर से पूंछकर आई, और अन्दर आने की आज्ञा देकर फिर चली गयीं। हमारा ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का एक अंश है, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड नहीं। कोई भी इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्डीय कल्पवृक्ष के विस्तार तक नहीं पहुंच पाये। चूंकि इस डाली(ब्रह्मांड) की भी सम्पूर्ण उर्जा, संरचना, उत्पत्ति, गति, क्रिया,विस्तार आदि का सूत्र वही है, जो मुख्य वृक्ष (सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड) का , इस लिए वे उत्पत्ति के शाश्वत सूत्रों एवं नियमों को जान तो गये, पर इसके वृहत रुप का सम्पूर्ण ज्ञान उन्हें भी नहीं हुआ। इसलिए तत्व वेत्ताओं ने “नेति-नेति” शब्द को लिए जिसका मतलब ( नहीं कहा जा सकता, नहीं कहा जा सकता) कहकर उस ‘परमात्मा’ की इस लीला को ‘अवर्णनीय’ की संज्ञा दी है।