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” मोती रत्न “(Pearl)
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मौक्तिक, शौक्तिक,मुक्ता ये मोती के संस्कृत पर्यायवाची हैं। इसे अरबी में लूलु तथा फारसी में मरवारीद कहते हैं। पालि मे इसे मुत्ता तथा प्राकृत में मुताहल कहते हैं।
प्राप्ति स्थान :-
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संसार के अनेक देशों में समुद्र तटीय स्थानों में मोती निकाला जाता है जिनमें तमिलनाडु, गुजरात, श्रीलंका के समुद्रतटों के अलावा फारस की खाड़ी, बोर्नियाद्वीप,आस्ट्रेलिया, क्वींसलैंड, न्यूजीलैंड तथा मध्य अमेरिकी के समद्रतटीय भाग मुख्य हैं। संप्रति भारत में बसरा से ही मोतियों का आयात होता रहा है।
रासायनिक संगठन :-
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मोती का रासायनिक सूत्र CaCo3 है, इस प्रकार यह कैल्शियम कार्बोनेट है।
शुद्ध मोती की पहिचान :-
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दो लीटर गोमूत्र मे 100ग्राम शाकम्भरी लवण ( सांभर नमक ) मिला लें। नमक मे आयोडीन न हो,यह ध्यान रखें। इसे मिट्टी की हाँडी मे भर दें। हाँडी आधी खाली होनी चाहिये। हाँडी के गलेमें दोनों सिरों पर दो छेद कर एक लकड़ी पिरो दें।( यह लकड़ी की शलाका हाँडी के मुख मे बने वृत मे व्यास का कार्य करेगी।) इस लकड़ी मे मोतियों को कपड़े की पोटली में बाँधकर इस प्रकार लटका दें कि हाँडी की पेंदी मे न छुये ऊपर ही रहे। इसे दोला यंत्र कहते हैं। इसमें मोतियों को तीन प्रहर तक मंद आँच मे स्वेदन करें।फिर मोतियों को पोटली से निकाल कर चावलों की भूसी पर रगडें। ऐसा करने पर असली मोतियों की चमक बड़ जायेगी, परन्तु नकली होने पर चमक चली जायेगी।
दोषयुक्त मोती:-
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धारियों, धब्बों एवं चितकबरेपन युक्त मोती को धारण करना अनिष्टकारी होता है।
शुद्ध मोती के छः गुण होते हैं।
” तारं वटटं अमलं सुसणिद्धं कोमलं गुरुं छः गुणा।।”
अर्थात दैदिप्यमान, गोल,निर्मल,सुस्निग्ध,कोमल तथा भारी ये छः गुण हैं।
मोती के प्रयोग:-
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मोती के धारण से शीत प्रकोप तथा जलघात नहीं होता। इसके धारण करने से मनुष्य के मन मे कोमल भावों का संचार होता है। व्यक्ति साहित्य मे रुचि लेने लगता है। १-मुक्तादि चूर्ण,२-मुक्ता भस्म ३- मुक्ता पिष्टी ४- मुक्ता पंचरस आदी अनेक औषधियों का निर्माण करते हैं।
मोती प्रयोग की ज्योतिषीय स्थितियां :-
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१- जन्म कुण्डली मे नीच राशि का चन्द्र हो और ,३,६,८,१२ आदि स्थान में बैठा हो।
२- क्षीण चन्द्र अष्टम भाव में मकर राशि में बैठा हो।
३- मिथुन लग्न में कर्क राशी का शनि द्वितीय भाव में बैठकर चन्द्र को देख रहा हो।
३- मेष लग्न में नीच का अष्टम चन्द्र शनि से दृष्ट हो।
४- चन्द्रमा की महादशा में शनि की भुक्ति तथा चन्द्र जन्मकुंडली में पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हो।
५- गोचर मे चन्द्र त्रक भावों में हो।
चन्द्रोत्पन्न व्याधियां और उपचार―
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जलोदर,जलोरस,जलवृषण,प्रतिश्याय,कास,श्वास, हिक्का,अनिद्रा, मधुमेह, जलपात,गलगंड, क्षयरोग, आंत्रिक ज्वर,कफ विकार,निमोनिया, आदि रोग चन्द्र के अशुभ होने से होते हैं। निवारण के लिए मुक्ताभस्म, मोती धारण करें और मोती का दान भी करें।
मोती धारण करने की विधि:-
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मोती को तर्जनी उंगली में सोमवार को जब पुष्य नक्षत्र हो सूर्योदय से एक घंटे के अंदर चन्द्रमा की होरा मे धारण करें। चाँदी मे ५ रत्ती भार का मोती पहनना चाहिए।” ऊँ सोम सोमाय नमः” इस मंत्र से १०८ बार अभिमंत्रित करके पहनना चाहिए।