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रोग एक उपचार अनेक – भाग 3
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#####$ हृदय रोग $######
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लक्षण :- हृदय रोग कई प्रकार के होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- वाल्ब आदि की बनावट में दोष, उच्च रक्तचाप से उत्पन्न व्याधियां, एंजाइना, धड़कनों का तेज होना, पलमोनरी संबंधी रोग,धमनियों से संबंधित रोग, हृदय के आकार में वृद्धि इत्यादि।
चिकित्सकीय कारण :-
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आनुवांशिक, जन्मजात, मानसिक तनाव, रहन-सहन, खान-पान, संक्रमण, मोटापा, मधुमेह, रक्तचाप की अनियमितता ।
ज्योतिषीय कारण :-
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यदि जातक की जन्म पत्रिका में निम्नलिखित में से कोई एक योग होता है, तो जातक उक्त रोग से पीड़ित होता है―
१- चतुर्थ भाव में पापग्रह हों और चतुर्थेश की पापग्रहों के साथ युति हो।
२- चतुर्थ भाव में सूर्य, चन्द्रमा और राहु हों।
३- चतुर्थ भाव से संबंधित आपोक्लिम एवं पणफर भावों में क्रूर ग्रह हो।
होमियोपैथिक उपचार :-
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काल्मिया,एमाइलनाइटोसम,कार्बोवेज,नेट्रमम्यूर,केटेगस, लीलीयमकट्रिग, स्पायजेलिया,ग्लोनाइन,केक्कस,बेलाडोना, डिजिटेलिस, जेल्सीमियम इत्यादि औषधियों का प्रयोग करें।
एलोपैथिक उपचार :-
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नाइट्रोग्लिसरिन,ग्लिसराइल,ट्राइनाइट्रेड, थियेजिक डायुरेटिक्स,बीटा एड्रियो सक्टरएण्टर गोनिस, वैरापामिल औषधियों का प्रयोग तथा सर्जरी।
आयुर्वेदिक उपचार :-
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हृदय रोग― अश्वगंधारिष्ट, अशोकारिष्ट, मकरध्वज, अर्जुनारिष्ट, नार्गाजुनाभ्ररस,प्रभाकर बटी, याकूति,जवाहरमोहरा, इत्यादि औषधियों का प्रयोग करें।
उच्च रक्तचाप ― सर्पगंधा का प्रयोग करें।
निम्न रक्तचाप ― स्वर्ण सिन्दूर, बृहन्मकरमुष्ठि का प्रयोग करें।
तांत्रिक उपचार :-
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रक्तचाप को नियमित करने के लिए रुद्राक्ष की माला से निम्नलिखित मंत्र का जप करना चाहिए―
ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।
अथवा
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
एक्यूप्रेशर उपचार :-
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उच्च रक्तचाप के लिए Liv2,Liv3,Li15,Cv17,Si9 आदि एक्यूप्रेशर बिन्दुओं पर दबाव तथा निम्न रक्तचाप के लिए H1,Liv12, आदि एक्यूप्रेशर बिन्दुओं पर दबाव डालने से रक्तचाप नियमित होता है।
योगासन उपचार :-
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नित्य प्राणायाम करने से हृदय रोग में लाभ होता है।
रुद्राक्ष उपचार :-
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रुद्राक्ष की भस्म का सेवन तथा रुद्राक्ष कंठ मे धारण करने से हृदय रोग में आराम मिलता है।
चुम्बकीय उपचार :-
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उच्च रक्तचाप― उच्च शक्ति के चुम्बकों पर दोनों हथेलियों को 5-10 मिनट रखने से तथा दाईं कलाई मे चुम्बकीय बेल्ट धारण करने से उच्च रक्तचाप मे लाभ होता है।
निम्न रक्तचाप ― उच्च शक्ति के चुम्बकों पर दोनों हथेलियों 15 से 20 मिनट रखने से तथा चुम्बकीय बेल्ट को बाएँ हाथ मे बाँधने से निम्न रक्त चाप में लाभ मिलता है।
हृदय रोग―दाईं हथेली को चुम्बक की उत्तरी ध्रुव पर तथा बाईं हथेली को दक्षिणी ध्रुव पर 10-15 मिनट नित्य रखने से लाभ मिलता है।
ज्योतिषीय उपचार :-
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ऊँ कयानश्र्चित्रsआभुवदूती सदा वृधः सखा।
कया शचिष्ठया वृता।।
उपरोक्त मंत्र का जप करने से रोगी को लाभ होता है।
यंत्र उपचार :-
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| 9 | 16 | 11 |
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उपरोक्त यंत्र को गले मे धारण करें।
रत्न चिकित्सा :-
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माणिक्य, मोती, और गोमेद रत्न को दान दें।
स्नान से उपचार :-
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लाजवन्ती, कूठ,बला,बरियारा,मालकांगनी, मोथा,सरसों, हल्दी, दारुहल्दी, सरपुड़्खा तथा लोंध। इन सभी औषधियों को जल में मिलाकर स्नान करने से लाभ होगा।
व्रत से उपचार :-
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भगवान भास्कर को नित्य अर्ध्य दें। तथा सोमवार का व्रत करें।