
भारत देश का कोई भी कार्य बिना देव कल्पना के प्रारम्भ नहीं किया गया। यहां का कोई भी शास्त्र बिना दैवीदेन के पढ़ने योग्य नहीं बना जैसे :-
नृत्य में- नटराज शिव
संगीत में- नाद ब्रह्म
आलेख्य मे- जगन्नाथ के पट चित्र
वास्तु मे – वास्तु ब्रह्म
मत्स्य पुराण मे:- दो बड़े प्रख्यात नामा स्थापति मिलते हैं पहले विश्वकर्मा जी एवं दूसरे मय।
मय ने असुरों के. आचार्य शुक्राचार्य जी से दीक्षा ली थी, मय ने ही पाण्डवों के सभी भवन का निर्माण किया था।
विश्वकर्मा जी प्रभास वसु के पुत्र थे, अन्य सम्बध मे विश्वकर्मा जी बृहस्पति का भान्जा थे।
विश्वकर्मा जी ने इन्द्र की अमरावती का निर्माण किया था।
विश्वकर्मा जी का अपने पुत्रों से संवाद :-
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भगवान विश्वकर्मा जी ने अपने चारो मानस सुतों जय,विजय,सिद्धार्थ, और अपराजित से कहा कि पुत्रों तुम्हें विदित ही है कि पुराकाल मे ब्रह्मा जी ने इस विश्व की सृष्टि के पूर्व वास्तु की सृष्टि की थी।
तब धर्म कर्म और श्रेष्ठता की प्राप्ति के लिए एवं लोक रक्षण के लिए व्यवस्था करके लोकपाल की कल्पना की। मै भी विश्वनाथ कमल भू ब्रह्मा जी के द्वारा लोको के संनिवासार्थ अदिष्ट किया गया हूं।
मैने अपनी बुद्धि से अभी तक ( तीनों लोकों मे ) सुरों,असूरों एवं नागो के मनोहर नगर,उद्यान तथा सभा स्थान आदि की स्थापना की। अब मैं भूतल मे जाकर वेन के पुत्र महाराज पृथु की प्रिय चिकीर्षा से,हे पुत्रों वहां पर नगर,ग्राम, खेट ( बस्तियां ) को अलग अलग बनाऊंगा, और इस सम्पूर्ण कार्य को मै तुम लोगों की सहायता से करुंगा।
महाराज पृथु के निवासार्थ ,चित्र विचित्र नगरों, ग्रामों और खेटो से अति मनोहर ,उनकी राजधानी का निर्माण मैं स्वयं करुंगा और आप लोग एक एक कर चारों दिशाओं मे जाकर उन उन आवश्यक जन निवासों के अलग अलग निवेश प्रस्तुत करो, साथ ही साथ मार्गो,समुद्रों, पर्वतों और नदियों के बीच बीच अन्तरावकाश पर राजाओं के भयशमन हेतु दुर्गो की स्थापना करो।
इसके अतिरिक्त वर्णोचित, प्रकत्युचित से तत्तदुचित संस्थान एवं चिन्हपुर सर प्रति ग्राम,प्रतिनगर,मे वर्णोश्रम संस्थान विभाग सम्पादन करो अर्थात सभी वर्णो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के लिए घर बनाओं।
इह प्रकार सारी योजना तैयार हुई।
लगातार………