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“ विलंब विवाह योग “
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१- सप्तमेश वक्री हो एवं मंगल आठवें हो तो विलंब विवाह योग बनता है।
२-लग्न ,सातवां भाव, सप्तमेश व शुक्र स्थिर राशि ( वृष,सिंह, वृश्चिक, कुंभ ) मे हो तथा चन्द्रमा चर राशि ( मेष,कर्क,तुला,मकर ) मे हो तो यह योग बनता है । इसमे ५० वें मे विवाह होते देखा गया है।
३- सप्तमेश सप्तम भाव से यदि छठें,आठवें एवं बारहवें स्थान मे हो तो यह योग बनता है। इसमे विवाह योग्य आयु निकल जाने के बाद ही विवाह होता है।
४-सप्तमेश शनि से युक्त हो या शनि शुक्र के साथ हो या शुक्र द्वारा देखा जाता हो तो यह योग बनता है।
५- शनि शुक्र लग्न से चौथे स्थान में हो तथा चन्द्रमा छठे, आठवें, बारहवें स्थान में हो तो यह योग बनता है।
६- राहु और शुक्र लग्न मे हो तथा मंगल सातवें स्थान में हो तो यह योग बनता है। इस योग मे २८/२९ वर्ष के बाद विवाह होता है।
७- शुक्र सातवें कर्क, वृश्चिक, या मकर राशि में हो तथा चंद्रमा+शनि पहले,दूसरे, सातवें, ग्यारहवें स्थान में हो तो यह योग बनता है। इसमें विवाह प्रायः 36 वर्ष की आयु के बाद होता है।
८- अष्टमेश पंचम मे हो तो यह योग बनता है।
९- सूर्य व चंद्र शनि की कुदृष्टि में हो तो यह योग बनता है।
१०- शुक्र छठे, आठवें, बारहवें स्थान में हो तथा धनेश, सप्तमेश पापपीडित हो तो यह योग बनता है।
११-सप्तम भाव मे पापग्रह हो तथा सप्तम भाव शनि द्वारा देखा जाता हो तो यह योग बनता है।
१२- सप्तमेश निर्बल हो तथा शनि+मंगल की युति पहले, दूसरे, सातवें या ग्यारहवें भाव में हो तो यह योग बनता है।
१३- मंगल+शुक्र की युति पांचवें, सातवें या नवमें स्थान में हो तथा शनि द्वारा दृष्ट हो तो यह योग बनता है।
१२- चन्द्र+राहु की युति सातवें भाव में हो,शुक्र नीच का हो तथा सप्तमेश अस्त हो तो यह योग बनता है।
१३- गुरु नीच राशि का होकर लग्न या चंद्रमा से छठे,आठवें, बारहवें स्थान मे हो तो यह योग बनता है।