March 18, 2019

वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति― रत्न चिकित्सा पद्धति

 1,432 total views,  3 views today

वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का अर्थ है दूसरी चिकित्सा पद्धति। दूसरे शब्दों में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जिसे एलोपैथी कहा जाता है,से भिन्न चिकित्सा पद्धति से है। वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां शताधिक हैं। इनकी पूरी सूची बनाना संभव नहीं है।फिर भी सर्वाधिक प्रचलित चिकित्सा पद्धतियां की एक सूची यहाँ प्रस्तुत है।
१-प्राकृतिक चिकित्सा।
२- योग चिकित्सा।
३- एक्यूपंक्चर।
४- एक्यूप्रेशर।
५- चुम्बक चिकित्सा।
६- सूर्य चिकित्सा।
७- जल चिकित्सा।
८- ज्योतिषीय चिकित्सा।
९- यूनानी चिकित्सा।
१०- होमयोपैथी।
११- बायो कैमिक चिकित्सा।
१२- मूत्र चिकित्सा।
१३- मंत्र चिकित्सा।
१४- पराश्रव ध्वनि चिकित्सा।
१५- पिरामिड चिकित्सा।
१६- वास्तु चिकित्सा।
१७- स्नान चिकित्सा।
१८- रत्न चिकित्सा।
१९-रुद्राक्ष चिकित्सा।
२०- पुष्प चिकित्सा।
२१- संगीत चिकित्सा।
२२- स्वर चिकित्सा।
२३- रंग चिकित्सा।
२४- नस्य चिकित्सा।
२५- त्राटक चिकित्सा।
२६- हास्य चिकित्सा।
२७- हर्बल चिकित्सा।
२८- यंत्र चिकित्सा।
२९- शाक चिकित्सा।
३०- डांस चिकित्सा।
३१- ध्यान चिकित्सा।
३२- सुजोक चिकित्सा पद्धति।
३३- धात्विक चिकित्सा।
३४- स्पर्श चिकित्सा।
३५- हिप्नोटिज्म चिकित्सा।
३६- हस्तमुद्रा चिकित्सा।
३७- फिजियोथैरेपी।
३८- रेकी चिकित्सा।
३९- लेजर चिकित्सा।
४०- टैलीपैथी चिकित्सा।
४१- गंध चिकित्सा।
४२- निद्रा चिकित्सा।
४३- कीमोथैरेपी।
४४- आहार चिकित्सा।
४५- ताईचिचुआन पद्धति।
४६- नैसर्गिक चिकित्सा।
४७- तिब्बी चिकित्सा।
४८- एबसेंट हिलिंग।
आदि आदि सैकड़ों चिकित्सा पद्धति हैं।

रत्न चिकित्सा एक तात्विक विवेचन
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
रमणीयतरंयस्माद् रमन्ते^स्मिन्नयान्वित्मः।
तस्माद्रत्नमिदंख्यातं शब्दशास्त्र विशारदैः।।
” रमते^त्र” इति रत्नम् अर्थात जिस पर मन रम जाए,उसे ‘ रत्न’ कहते हैं।
इस प्रकार संस्कृत व्याकरण के अनुसार रम् धातु में ‘न’ प्रत्यय लगने से रत्न शब्द सिद्ध होता है।
धातु तथा प्रत्यय के मध्य में जुड़ने वाला शब्दांश ‘ आदेश’ कहलाता है। रम्+त्+न= रत्न बनता है।
रमणीय और आकर्षक होने से रत्न कहलाते हैं।
रत्नों मेंपंचरत्न, नवरत्न, चतुर्दश रत्न तथा चतुराशीति रत्न प्रमुख हैं
पंच रत्नों का उपयोग पूजा-अर्चना, मूर्ति प्रतिष्ठादि में होता है।
चतुर्दश रत्न समुद्र मंथन से प्राप्त वस्तुओं को कहते हैं।
चौरासी रत्नों के अन्तर्गत बहुमूल्य धातुओं एवं पाषाण और कुछ प्राणिजद्रव्य आ जाते हैं। अंग्रेजी में रत्नों को GEM तथा JWELL कहते हैं।

माणिक्य मुक्ता फल विद्रुमणि तार्क्ष्यं च पुष्पं भिदुरं च नीलम्।
गोमेदकं चाथ विदूरकं च क्रमेण रत्नानि नवग्रहाणाम्।।
अर्थात माणिक्य, मोती, मूँगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम,गोमेद तथा विदूरक ( लहसुनिया) ये क्रमशः नव ग्रहों के रत्न है।
रसे रसायने दाने धारणे देवतार्चन।
सुलक्ष्याणि सुजातीनि रत्नान्युक्तानि सिद्धये।।
अस्तु रत्नों की पूजा करनी चाहिए। उनका दान करना चाहिए। उनका नित्य प्रति दर्शन करना चाहिए। उन्हें भक्ति भाव से प्रणाम करना चाहिए।
अगलें अंक मे रत्नों से जुड़ी समस्त जानकारी आपको दी जायेगी।
क्रमशः —————————————————-

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *