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यों तो संपूर्ण शब्द ब्रह्म के ही रूप हैं,परन्तु भिन्न-भिन्न शब्दों का गुण और प्रभाव भी भिन्न- भिन्न हैं, इसलिए प्रत्येक शब्द को अंक या संख्या में परिवर्तित कर माप कर ली जाती है। संख्या और शब्द के संबंध से हमारे ऋषि पूर्णरुप से परिचित थे। आइये संख्या और क्रिया का घनिष्ठ संबंध समझते हैं।
पहले समझते है कि चमत्कारी संख्या 108 को।
१०८ संख्या में १,०,८ तीनअंक हैं।इन तीन अंकों का गूढ़ रहस्य यह हैं- अंक १ मे व्यापक, एक ब्रह्म का बोधक है, अंक ० शब्द के मूल -आकाश को शून्य कहते है, और अंक का मूल को भी शून्य, शून्य से ही शब्द, शून्य से ही अंक की उत्पत्ति होतीं है। आकाश की तन्मात्रा शब्द है। आकाश शून्य है। आकाश ब्रह्म है। अंक ८ माया का धो्तक है। जब ब्रह्म रुप अंक एक और पूर्णता का प्रतीक शून्य आया, वहीं माया तिरोहित हो जाती है।
इस बात को आइये अन्य तरीक़े से समझते है। मनुष्य की श्वास दिन-रात में २१८०० चलते हैं, और २.५-२.५ घड़ी के अंतर से श्वास बदलते रहते हैं। एक बार दाहिने नथुने से ढाई घड़ी तो दूसरी बार बायें नथुने से २.५ घड़ी। ( १ घड़ी = २४ मिनट ) ; इस तरह श्वासों के चलने का प्रमाण रहता है। याने १०८०० श्वास दाहिने नथुने से और १०८०० श्वास बायें नथुने से चलते हैं और २४ घंटे में कुल २१६०० श्वास होते है। जिस दाहिनी नाड़ी से श्वास चलते है उसे सूर्य नाड़ी ( पिंगला नाड़ी ) कहते है। बायी नाड़ी को इड़ा या चन्द्र नाड़ी कहते हैं।
अब इसका योगशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र का आधार समझते हैं- सूर्य जब संपूर्ण राशियों पर एक पूरा चक्र( चक्कर) लगा लेता है, तब एक वृत्त पूरा होता है। एकवृत्त मे ३६०अंश होते हैं। इस प्रकार सूर्य की एक प्रदक्षिणा के अंशों की कला बनाएं ,तब ३६०×६०=२१६०० कला ।
सूर्य ६ माह उत्तरायण तथा ६ माह दक्षिणायन मे रहता है । इस प्रकार २१६०० को २ भागों में विभक्त करने से फिर हमें १०८०० प्राप्त हुई।
प्रत्येक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक ६० घड़ी हुए, जिसके पल बनाने पर ६०×६०=३६००एवं विपल वनाने पर ३६००×६०=२१६०० विपल हुये ,अतः दिन मे १०८०० और रात मे १०८०० हुये।
अतः जब शब्द, काल, संख्या का सामंजस्य कर दिया जाता है। एवं आप एक रक्षा करने वाले शब्द अर्थात मंत्र से १०८ मनकों की माला से जाप करेंगें तो माया का आवरण छिना हो जायेगा और ब्रम्ह का साक्षात्कार होगा।